तुलसीदास ओ तुलसीदास
तुलसीदास ओ तुलसीदास
तुम भी प्रेम पाश में
सारी हदें लांघ गये थे
रजनी के तम में
जली जो विरह अगन उर में
तुम लाश को नाव और
सर्प को रस्सी समझ बैठे थे
तुलसीदास ओ तुलसीदास
तुम भी प्रिये की आस में
भटके थे वन वन
किसी की तलाश में
सच सच बतलाना
रत्नावली के दमक से
तुम भी कुछ देर जले थे
तुलसीदास ओ तुलसीदास
पाकर अपनी मूर्खता पर
रत्ना के कटु प्रत्युत्तर को
तुमने तुरंत राम भक्ति के
बीज अपने हृदय में बोये थे
राम को पाकर वन की घास
बन गये थे तुम तुलसीदास
तुलसीदास ओ तुलसीदास