गीतिका/ग़ज़ल

पिता

अपनी आँखों से कभी पर्दे हटाकर देखना,
पिता क्या है उनकी जगह आकर देखना।

किया कुर्बान अपने शौकों को तेरे खातिर,
अपनी जिम्मेदारी तुम भी निभाकर देखना।।

बचपने से आज तक न यूँ ही बड़े हुए,
अपने बच्चे को गोदी में उठाकर देखना।

की हैं पूरी जिदें तेरी छोटी हों या बड़ी,
तुम भी कोशिश करना कुछ लाकर देखना।

किया गोदी में बैठ कर तूने सैर सपाटा,
उनको भी एकबार कहीं घुमाकर देखना।

वो कड़क डाँट उनकी भले तुम्हें बुरी लगी,
अपने बच्चे को प्यार से बहलाकर देखना।
©O P Pandey Soham

ओमप्रकाश पाण्डेय सोहम

Writer/Blogger बहराइच, उत्तर प्रदेश