नहीं रही वो बात
अब न वो सुबह होती है
न वो वैसी रात
होता तो सब है मगर
अब नहीं रही वो बात
अब न वैसी गर्मी होती है
न वैसी बरसात
होता तो सब है मगर
अब नहीं रही वो बात
अब न वैसे लोग मिलते हैं
न ही वैसे ख्यालात
मिलते तो सब हैं मगर
अब नहीं रही वो बात
अब न आँगन में वैसी
धूप आती है कभी
न कौओं की काँव काँव
सुनाई देती है
न शायद चिड़ियाँ
चहचहाती हैं वैसा अभी
न पेड़ों पर वैसी हरियाली
छाई रहती है
न नदी किनारे वैसी पेड़ों की
परछाई रहती है
न वैसा सिनेमा रहा
न ही वैसे गाने रहे
न वैसी यादें रहीं
न अब वो तराने रहे
न अब वैसा बचपन रहा
न ही रही वैसी जवानी
न अब वैसे गीत रहे
न रही वैसी कहानी
न तो शहरों में ही
अच्छा लगता है न गाँवों में
न जहाजों में
खुशी मिलती है न नावों में
क्यों क्यों क्यों
हमारी सोच थी विकास हो
जाएगा
पर क्या पता था विकास साथ में
विनाश भी लाएगा
क्या होगा कैसे कब होगा
ये तो समय ही बताएगा
ये मेरा निराशावाद नहीं
न है मेरे मन की बात
ये तो मेरा दिल कहता है
कहते हैं मेरे जज्बात
कहते हैं अब के हालात
सीधी सच्ची है ये बात
— नवीन कुमार जैन