हास्य-व्यंग्य -: जलप्रलय बनाम जनप्रतिनिधि
विगत दिनों जहां बिहार राज्य के आधे जिलों की लाखों आबादी जल प्रलय की त्रासदी से त्राहिमाम थी वहीं लालटेन की लौ पीड़ित परिवार तक पहुंचने की बजाय एवं “कृष्ण-अर्जुन” की युगल जोड़ी बाढ़ आपदा राहत में शामिल होने की बजाय “जनादेश अपमान यात्रा” के तीर्थाटन में मशगूल थी। बिहार के विपक्षी टीम के भलेमानस नेता लालू काका के फैमिली टीम के नेतृत्व में बाढ़ पीड़ितों को ढूंढने की बजाय टेलीस्कोप से “सृजन के दुर्जनों “की खोज में लगें हुए थे। ये लोग लगातार सदन का बहिष्कार कर रहे थे एवं इस्तीफे की मांग कर रहे थे।ऐसा लग रहा था मानो सीएम एवं डिप्टी सीएम के इस्तीफा देने से राज्य प्राकृतिक आपदा से त्राण पा लेगा और राज्य में नैतिक शासन के सुराज का आगाज़ हो जाएगा।
जहां जल प्रलय में सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा चुके थे और लाखों लोग जिंदगी के लिए जद्दोजहद कर रहे थे वहीं दूसरी ओर सत्तारूढ़ पार्टी जद (यू ) के वरिष्ठ बागी चचा शरद यादव एवं नीतीश के खेमों के नेता शक्ति प्रदर्शन कर अपनी-अपनी साख बचाने को जद्दोजहद कर रहा था। जहां एक ओर राज्य में बाढ़ जल तांडव कर रहा था वहीं दूसरी ओर नीतीश गुट व शरद गुट के बीच वाक् युद्ध चल रहा था।
एक ओर यूपी , बिहार एवं बंगाल में बाढ़ का कहर चरम पर था और पीड़ितों को अपने जनप्रतिनिधियों से राहत सहायता की आस लगी थी तो इनके आलाकमान इनकी चिंता करने की बजाय भाजपा से देश को बचाने की चिन्ता में लगे थे। बंगाल की ममता दीदी, यूपी के अखिलेश भैया ,जदयू के शरद चचा, बिहार के लालू काका अपने कृष्ण-अर्जुन के साथ गांधी मैदान से भाजपा के विरुद्ध शंख फूंकवा रहे थे।
ये सभी राजद के बैनर तले महागठबंधन प्रोडक्शन हाउस में मल्टी पार्टी वाली राजनीतिक फिल्म”भाजपा भगाओ देश बचाओ” के प्रोमो में व्यस्त थे।
कांग्रेस की गाॅड मदर सोनिया काकी भले ही आपदा पीड़ितों के लिए संवेदना व्यक्त करना भूल गई हो किंतु रैली में उपस्थित कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के लिए अपना रिकार्डेड संदेश भिजवाना ना भूली।आखिर बात देश को भाजपा से बचाने की जो थी। तेजप्रताप भैया स्वयं को कृष्ण एवं भाई तेजस्वी को अर्जुन बताकर भाजपा के विरुद्ध महाभारत का शंखनाद भी कर डाला।अब इन्हें कौन समझाए कि महाभारत में कौरव सेना कई वीर योद्धाओं का महागठबंधन ही तो था।और इनका हश्र क्या हुआ ये तो सर्वविदित है।
बहरहाल बाढ़पीड़ितों के लिए राहत सामग्री भले ही ना बंटी हो किंतु इस रैली में शामिल होने वाले कार्यकर्ताओं के आने जाने व खाने का उत्तम प्रबंध था।
यह विडंबना ही है कि प्राकृतिक आपदा की इस संकट बेला में सभी जनप्रतिनिधि व पार्टियां एकजुट होकर बाढ़ पीड़ितों की सेवा व राहत कार्यों में लगे रहने की बजाय राजनीतिक रैली व एक दुसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में भिड़े हुए है। इनकी स्थिति सावन के धृतराष्ट्रों वाली ही है जिन्हें जन समस्याओं से ज्यादा अपने गठबंधन व कुर्सी की चिंता है। और ये बाढ़ पीड़ितों की सुधि लेने की बजाय अपने अपने सत्तामोह में बेसुध थे। बेहाल जनता जल प्रलय व जन प्रतिनिधि के उदासीन रवैये के दोहरी मार को झेलने को मजबूर थे।
— विनोद कुमार विक्की