अब तक बाँच न पाया !!
तेरी चाहत को पूजा है , सिर माथे बिठलाया !
आँखियों में क्यों नमी तैरती , कोई जान न पाया !!
सबका अपना अहम बोलता , हम तो यों ही डोलें !
वामा तो बस है निरीह सी , बदले में यह पाया !!
दीवारों में कैद लगे है , अब उड़ान सपनों की !
मन का भेदी मेरे मन को , अब तक बांच न पाया !!
सजधज तो है ऐक दिखावा , बन्धन कसे कसे से !
मनवा यहाँ घिरा है ऐसा , बाहर झांक न पाया !!
जागी जागी सी उम्मीदें , पलकें सजी सजी सी !
अधरों पर खामोशी बरबस , इतना हाथों आया !!
मुस्कानें मिल जाएं सहज सी , अपनी चाह निराली !
झांंकोगे तुम दिल के अन्दर , सब कुछ हमने पाया !!
— बृज व्यास