आज भी प्रासंगिक हैं दीनदयाल जी
एकात्म मानव दर्शन के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने पूरी तरह से भविष्य के भारत का अध्ययन किया था। इसी को ध्यान में रखते हुए दीनदयाल जी ने अपना चिन्तन प्रस्तुत करते हुए देश को भविष्य की दिशा के प्रति आगाह भी किया है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद की आधार शिला में भारत के सांस्कृतिक उत्थान के प्रति आगाह किया है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा है कि हमारी राष्ट्रीयता का आधार भारत माता हैं, केवल भारत नहीं। माता शब्द हटा दीजिये तो भारत केवल जमीन का टुकड़ा मात्र बनकर रह जायेगा। वास्तव में माता शब्द में एकात्म भाव है। इस भाव से जन-जन में राष्ट्रीय भाव का प्राकट्य होता है। यह बात सही है कि दीनदयाल जी ने जो चिन्तन की धारा प्रवाहित की, वह किसी राजनीतिक दल को सत्ता प्राप्त कराने के लिए नहीं थी, बल्कि भारत के विश्व गुरु के परम पद को प्राप्त करने की एक सकारात्मक योजना थी। पंडित जी ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत को मतबूत बनाना है तो भारत के जीवन मूल्य और सिद्धांतों की बात करने वाले दल को अपना वोट प्रदान करें। क्योंकि सही मायने में यही सांस्कृतिक भारत का दर्शन है। पंडित जी चाहते थे कि भारत में रहने वाले प्रत्येक हृदय से भारत की भावना प्रकट हो। सही अर्थों में पंडित दीनदयाल उपाध्याय आमजन के बीच के बीच के एक ऐसे नायक थे, जिन्होंने अपना सोच केवल अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति के उत्थान के लिए समर्पित किया। सच भी है कि जब तक भारत भूमि पर निवास करने वाले इन गरीब बंधुओं को विकास की मुख्य धारा में शामिल करने के लिए प्रयास नहीं किए जाएंगे, तब तक स्वतंत्रता के मायने अधूरे हैं। हमारे देश में आजादी के बाद जिस दिशा का प्रतिनिधित्व किया गया और उसके परिणाम स्वरुप देश की जो दिशा हुई, वह भारतीयता से पूरी तरह से दूर होती हुई दिखाई दे रही है। यह बात सही है कि जिस देश की राष्ट्रीय पहचान जीवित होती है, वह देश अपनी भविष्य की स्वर्णिम राह का भी निर्माण कर सकता है, लेकिन जो देश दूसरों की बनी हुई राह पर चलकर उत्थान करने का प्रयास करता है, उस देश की उत्थान की दिशा अपने देश की मूल भावना के विपरीत ही होगी। हम जानते हैं कि आज विश्व के अनेक देश विकास तो कर रहे हैं, लेकिन उनकी अपनी सांस्कृतिक पहचान जीवित है। अपने देश के प्रति उनका लगाव भी इसी पहचान के कारण है। हमारे देश में क्या हो रहा है? हम अपने मानबिन्दुओं के प्रति कितने सचेत हैं? क्या यह राह भारत का उत्थान कर सकती है। यह कुछ ऐसे ही सवाल हैं, जिनका स्पष्ट उत्तर पंडित दीनदयाल जी के पास था। उनके चिन्तन की धारा में था। वास्तव में अपने राष्ट्रीय पहचान की उपेक्षा ही समस्याओं का सबसे बड़ा कारण है। देश की समस्याओं को दूर करने के लिए सबसे पहले यही आवश्यक है कि अपनी राष्ट्रीय पहचान के प्रतीकों के प्रति तादात्म्य स्थापित किया जाए। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के चिन्तन में यह भी दिखाई देता है कि वह भारत की मूल आत्मा गांवों का विकास चाहते थे। वर्तमान में गांवों की जो दशा है वह ठीक नहीं कही जा सकती। गांव समृद्ध होंगे तो देश भी समृद्ध होगा। पंडित जी के चिंतन में गांवों को सुदृढ़ बनाने का बेहतर तरीका बताया गया है। कुल मिलाकर यही कहना उचित होगा कि भारत के उत्थान के लिए पंडित का पूरा चिंतन था। वर्तमान सरकार पंडित के सूत्रों को अपनाकर भारत को मजबूत करने का अभियान चला सकती हैं। जो आज के परिवेश के लिए आवश्यक भी है।
— सुरेश हिन्दुस्थानी