“गीतिका”
गीतिका आधार छंद- मंगलवत्थू (मापनीमुक्त) विधान- 22 मात्रा, 11,11 पर यति, मध्य यति से पूर्व और पश्चात त्रिकल, ये त्रिकल क्रमशः गाल और लगा हों तो सर्वोत्तम, समांत – आस , पदांत – रहे.
आया शुभ त्योहार, दशहरा खास रहे
कटकुटिया की रात, गोबर्धन वास रहे
जगमग है दिवाली, अवली दियों की हैं
भैया दूज सुहाय, बहन मन आस रहे।।
रावण का संहार, महिषासुर सु मर्दन
विजय पताका राम, शम्भु कैलाश रहे।।
शरद ऋतु जब आए, नाचे खंजन पक्षी
शीतल मंद बयार, विकल मधुमास रहे।।
कार्तिक बोले मोर, शोर बैल रि घंटी
खेती करे किसान, प्रवल विश्वास रहे।।
भारत की पहचान, दिखे मंदिर मस्जिद
धर्म सार ईमान, शुद्ध इतिहास रहे।।
‘गौतम’ मन का मीत, मिला है मेले में
लिए हाथ में फूल, महके सुबास रहे।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी