लघुकथा

राजकुमारी

घर की रौनक को दोनों बच्चों ने अपनी खिलखिलाहट से चार चाँद लगा दिये थे पर नन्हीं सी रिया के जन्म लेने से लेकर थोड़ी बडी़ होने तक कुछ लोगों को खटकती भी थी “माँ देखो ना दादी भईया को ही प्यार करती है सबसे बढिया चीज उसे ही क्यों मिलती है हर बार?”नन्हीं सी रिया दादी के व्यवहार से क्षुब्ध हो गई।
“नहीं बेटा ऐसा नहीं है दादी आपको भी इतना ही प्यार देगी बस दो ही बाद तो नवरात्री है फिर देखना दादी तुझे…”
“हाँ हाँ साल भर में कुछ ऐसे दिन ही मुझे मिलते है मुझे सब आँखों पर चढाये रखते है “रीया रूआंसी हो गई थी।
“हाँ बेटा माता चाहिए सबको अपने आंगन में,पर …,अरे तु रहने दे ना तु तो मेरी राजकुमारी है हमेशा ही तुम्हें प्यार करने के लिये किसी नवरात्री की मुझे जरूरत नहीं ।”रिया की हसरतों को पंख मिल गये थे “मैं मम्मी की राजकुमारी हूँ” सबको दौड़ दौड़ कर बता रही थी। अल्पना हर्ष

अल्पना हर्ष

जन्मतिथी 24/6/1976 शिक्षा - एम फिल इतिहास ,एम .ए इतिहास ,समाजशास्त्र , बी. एड पिता श्री अशोक व्यास माता हेमलता व्यास पति डा. मनोज हर्ष प्रकाशित कृतियाँ - दीपशिखा, शब्द गंगा, अनकहे जज्बात (साझा काव्यसंंग्रह ) समाचारपत्रों मे लघुकथायें व कविताएँ प्रकाशित (लोकजंग, जनसेवा मेल, शिखर विजय, दैनिक सीमा किरण, नवप्रदेश , हमारा मैट्रौ इत्यादि में ) मोबाईल न. 9982109138 e.mail id - [email protected] बीकानेर, राजस्थान

One thought on “राजकुमारी

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया लघुकथा !

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