कविता

मुक्त काव्य

“कैसा घर कैसी पहचान”

वो गाँव का दशहरा

मोटू की दुकान

मिठाई तो बहुत है

सजावट सहित है

पर कहाँ है मचान

रावण का निदान

धूआं धूल गुमान

कैसा घर कैसी पहचान॥

घर घर की जई

सुबह की पहुनई

अठन्नी चवन्नी मान

जै वीरा हनुमान

सिया राम लखन की शान

छोटे से तीर कमान

लीला मंच महान

कैसा घर कैसी पहचान॥

हाथी का चिग्घाण

भोपा कान दहाण

मेले का परीघान

मूली मगफली धान

मगही बीरा पान

गुड़ बेसन लड्डू जान

कचालू स्वाद भूलान

कैसा घर कैसी पहचान॥

पैदल पैदल जाना था

साथ में देशी गाना था

साग चने का खाना था

भाई मस्त जमाना था

सेंवई कोदो सवाँ सुजान

बाजरा बाजारी कोयल गान

गन्ना कचरस कोल्हू छान

कैसा घर कैसी पहचान॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ