मुक्तक/दोहा

“दोहा मुक्तक”

यह तो प्रति हुंकार है, नव दिन का संग्राम।

रावण को मूर्छा हुई, मेघनाथ सुर धाम।

मंदोदरी महान थी, किया अहं आगाह-

कुंभकर्ण फिर सो गए, घर विभीषण राम॥-1

यह दिन दश इतिहास है, विजय पर्व के नाम।

माँ सीता की वाटिका, लखन पवन श्रीराम।

सेतु बंध रामेश्वरम, शिव मय राम महान-

लंका नगरी राक्षसी, टिके न पापी नाम॥-2

दश दश माथ दशानना, भुजा बीस बेकार।

अमृत नाभि निहारता, लेकर वर नादार।

छल कल मन भरता गया, भक्त प्रथम लंकेश-

था अति प्रिय कैलाश का, खंडित किया करार॥-3

धन्य कोशलाधीश प्रभु, पहुँचे सरयू तीर।

माता कौशल्या मिली, भ्राता भरत अधीर।

अगवानी में सज गई, अवली दीप कतार-

नवरात्रि सुख संपदा, दीपावली अमीर॥-4

तरह तरह व्यंजन भरे, शुद्ध स्वाद पकवान।

सजे कार्तिक व्याहता, घर तुलसी धनवान।

नित्य साँझ दीपक जले, पूनम को बारात-

शरद ऋतू अति पावनी, माँ महिमा पहचान॥-5

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ