ग़ज़ल
तुम्हारी याद में प्रियतम ,नींद भी टूट जाती है ।
न मुझको चैन आता है,न कोई बात भाती है ।
तुम्हारी याद के मोती रोज आँखो से झरते हैं,
नींद को ,भीड़ ख्वाबों की, हमेशा तोड़ जाती है ।
तुम्हारे बिन फुहारें,गीत,कजरी राग सावन के –
मुझे हर रोज यह काली घटा भी मुँह चिढ़ाती है ।
बंद कमरे मे तन्हाई मुझे जीने नही देती ,
खुली छत पर चाँद की चाँदनी मुझको जलाती है ।
रात में दूर कोई जब विरह का राग गाता है ,
मुझे फिर रात सारी बस तुम्हारी याद आती है ।
प्रियतमें आ भी जाओ,अब हमारा दिल नही लगता,
‘दिवाकर’ की दर्द से तर गजल तुमको बुलाती है ।
— डा. दिवाकर दत्त त्रिपाठी