लघुकथा – दिवाली का उपहार
मंत्रीजी सौफे पर पड़े – पड़े टेलीविजन के चैनल बदल रहे थे, तभी उनका निजी सहायक भोला राम अपने माथे पर चिंता की लकीरें खीचे हुए आ पहुंचा… |
‘ सरजी…! आप चिन्तामुक्त होकर टी. वी. देख रहे हैं | सारे देश में अब आपकी आलोचना होनी शुरू हो गयी है, जिस तरह आपने पिछले साल से पैट्रोल के दाम धीमी गति से बढाये हैं, अब बहुत ज्यादा बढ गये हैं | जनता त्राहि – त्राहि कर उठी है | ‘
‘ तो इसमें कौन सी बढी बात है ? ‘
‘ पर… सरजी ! दीपावली आ रही है, लोगों को कुछ तो सस्ताई का उपहार देना होगा | ‘
‘ ठीक है ! आज रात से पैट्रोल पर पूरे 10 रूपये बढा दो… | ‘
‘ सर्र… सरजी ! ये आप क्या कह रहे हैं, जनता पहले से ही मंहगाई के कारण त्राहि – त्राहि कर रही है | आप क्यों जले पर नमक छिडक रहे हैं, आपको आगामी चुनावों की बिल्कुल चिंता नहीं है | ‘
‘ अरे…! मेरे भोले भोलाराम तुम भी निरे भोले ही रहे | दिवाली पर एकदम 5 रूपये सस्ती कर देंगे पैट्रोल, इससे लोगों को दिवाली का उपहार भी मिल जायेगा और तब तक हमारे आगामी चुनाव का खर्च भी निकल आयेगा | सांप भी मर जायेगा और लाठी भी न टूटेगी | ‘ मंत्री जी कुटिल मुस्कान के साथ सब एक ही सांस में बक गये |
बस इतना सुनते ही बेचारा भोलाराम अपना सिर पकड़कर वहीं फर्श पर धम्म से लुढक गया |
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा