लघुकथा – आक थू….
रात के दस बज रहे थे | अनुपम का विदेशीनस्लीय कुत्ता बड़े जोर- जोर से भौंक रहा था, शायद घर में हो रहे शोर – शराबे व अनजान चेहरों के जमाबडे को देखकर वो ऐसा कर रहा था |
अनुपम की शादी की यह पॉच वीं सालगिरह पार्टी थी, मेहमानों के साथ पीने – पिलाने का दौर चल रहा था पर कुत्ता भौंक – भौंक कर सभी के कान फाड़े दे रहा था | अनुपम अपने नौकर चंदू पर चिल्लाया – ‘ कहॉ मर गया रे चंदू… इस कुत्ते को बाहर बगीचे में लेजा | ‘ इतना सुनते ही चंदू कुत्ते को ले गया और बगीचे में बांध आया, आकर मेहमानों की सेवा में पुनः लग गया |
अनुपम को अब शांती मिल चुकी थी, तभी उसके बॉस शर्मा जी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए पूछ लिया – ‘ अनुपम ! तुम्हारे पिताजी दिखाई नहीं दे रहे… वो बीमार हैं क्या?’
अनुपम अपने बॉस शर्मा जी की बात सुन कर शकपका गया, उससे कोई जवाब नहीं बना | वहॉ खड़ा चंदू बोल पड़ा – ‘ साबजी ! दादाजी तो आश्रम चले गये, अब उनकी जगह पर वह विदेशी नस्ल का कुत्ता साबजी ले आये हैं | ‘
शर्मा जी अनुपम को देखते हुए बोले – ‘ कौन से आश्रम में गये हैं अनुपम तुम्हारे पिताजी | ‘
‘ जी… जी… वो ! वो ! पास के ही वृध्दाश्रम में हैं | ‘ अनुपम हकलाता हुआ बोला |
शर्मा जी – ‘ वाह ! अनुपम कितना अच्छा काम किया है | आज पार्टी में हजारों खर्च कर रहे हो, घर में विदेशी नस्ल का कुत्ता ले आये | क्या तुम्हारे पिताजी का खर्च उस विदेशी नस्ल के कुत्ते के रखरखाव से भी ज्यादा हो गया | लानत है, ऐसे कुपुत्र पर… आक थू ‘ …
शर्मा जी अनुपम को खरीखोटी सुनाकर पार्टी छोड चले गये और अनुपम नीचे जमीन पर नजरें गडाये बुत बना खड़ा रहा… |
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा