कविता : जो खुद को सेक्युलर नहीं मानते उनके लिए
बाहर हैं तो अभी सीधा घर जाइये
घर जाकर टी.वी. में आग लगाइये
सभी जाति -धर्म के लोग दिखाई देगें
फिल्म – सीरियल पर नजर दौड़ाइये
बच्चों को उस स्कूल में डालिये
जहां आपकी जाति के शिक्षक होने चाहिये
सामान हर दुकान से मत खरीदिये
दुकान भी आपकी जाति धर्म की होनी चाहिए
किस धर्म के आदमी ने बनाया है ये सामान ?
अपनी जाति के दुकानदार से पुछवाईये
आप सेकुलर नहीं जो किसी के भी हाथ का खालें
इसलिए कुछ दिन हो सके तो भूंखे ही सो जाइये
कपडा – लत्ता और मकान बनवाना हो यदि
अपनी जाति के सभी कारीगर ढूंढ लाइये
माँ बाप बीमार हो तो किसी के भी यहाँ मत जाइये
अपनी जाति का डॉक्टर ढूंढ इलाज़ करवाइये
ना मिले आपकी जाति – धर्म का डॉक्टर -वैध -हकीम
तो माँ -बाप को मरने के लिए यूँ ही घर बैठाइये
राम नाम सत्य बोलिये और बुलवाइये
हम सारे भारतीय सेकुलर ही थे और रहेंगे
दिमाग के इंजन में तेल जरा भरवाइये
सैकड़ो बातें हैं जो आपस में जोड़ती हैं
जाति – धर्म छोड़ सभी मानवता अपनाइये
सबसे मिलना , सभी संग चलना पहचान हो
मैं सेकुलर हूँ इस बात पर गुरूर होना चाहिये !