कविता
मुझे मुझसे मिलने दो
खुद से उलझकर
फ़िर सुलझने दो
कोई रोक नहीं पायेगा
जब भरुंगी लंबी उडान
खुद का सहारा बनकर
नये पंख लगने दो
ये जो काले बादल
घुमड घुमड़ करके आ गये
इनके पीछे छुपा
आसमानी एक जहां
मुझे बुलाता है नूतन
तुम हो यहीं हो
यहीं कहीं, चारों ओर
मिलो तो खुद से
ढून्ढो अपने आप को
बिखरी हुई सी घूमती तुम
खुद को समेटो जरा !