कविता- सिर्फ तेरे लिए
जिए जा रहे हैं उसके लिए
कैसे मानलें वो अब नहीं
ये फ़िज़ाएं, लहराती हवाएं
करवट बदल खिलती कलियाँ
बार-बार अहसास कराती हैं
जी रही है वो भी मेरे लिए
वो है, यही है मुझ में ही
इतराती हुई, शर्माती हुई
घुँघरू पहन नाचती हुई
कानों में आकर कहती है
मैं यहीं हूँ सिर्फ तुम्हारे लिए
हवाओं में खुशबु का घुल जाना
लौटकर उसका मेरी गली आना
रह-रहकर वह मुस्कुराती है
आँखों से सब बताती है
मैं हूँ सिर्फ और सिर्फ तेरे लिए
— जयति जैन ‘शानू’