नोटबंदी और जीएसटी
विगत कई दिनों से नोटबंदी और जीएसटी के कारण बाजार पर होने वाले दुष्प्रभावों पर चर्चा का बाजार गर्म है। निश्चित तौर पर नोटबंदी के दौरान पैसों की अनुपलब्धता व कुछ बैकों द्वारा बरती गयी अनियमितता ने सरकार की उन उम्मीदों को ध्वस्त कर दिया था कि इससे वह कालाधन वापस ला पायेगी। मगर इन गड़बड़ियों के कारण हर काले धन वाले को अपना पैसा बचा लेने का अवसर मिला। फिर भी जनता को यह उम्मीद जगी कि सरकार जनता के ही हित में भ्रष्टाचार के खिलाफ काम कर रही है। इधर आधी रात को जिस प्रकार से जीएसटी को प्रारंभ किया गया है उसमें सरकार ने जरूर कदाचित जल्दबाजी की है हालांकि यदि पहली टैक्स फिलिंग के लिए व्यापारियों को चार माह का समय दे दिया जाता तो यह उन्हें अक्टूबर माह तक का समय देता भले ही सरकार इसे जुलाई मंे ही पेश करती। मगर प्रतिमाह हिसाब देना, बदतर नेटवर्क व सी ए की पर्याप्त अनुपलब्धता से व्यापारी जरूर परेशान हैं मगर यह भी तय है कि उनकी परेशानी हिसाब के सरकार तक पहुंच जाने तक की भी है कि अब सरकार को सब कुछ ज्ञात रहेगा। देश में एक और चलन है कि जब तक सिर पर काम नहीं आता हमारे यहां कोई कुछ नहीं करता इसलिए जीएसटी जब भी आता जिस प्रकार का भी आता यह परेशानी तो होनी ही थी। पहली तिमाही के परिणाम सरकार के पक्ष में नहीं गये हैं मगर उम्मीद की जानी चाहिये कि अप्रैल 2018 से जून 2018 की तिमाही के परिणाम यह सब भुला देने के लिए पर्याप्त रहेंगे। विपक्ष को कुछ दिन के लिए आॅक्सीजन जरूर मिली है लेकिन सरकार केा गलती से भी गलती करने से बचना चाहिये। हालांकि बड़े परिवर्तन जब जब जहां जहां हुए हैं वहां कुछ दिन तो उथल पुथल में बीतते ही हैं। उम्मीद की जानी चाहिये कि सरकार के ईमानदार कदम जनता केा निराश नहीं करेंगे और भ्रष्टतंत्र केा मुस्कुराने का कोई मौका नहीं देंगे।
— डाॅ द्विजेन्द्र शर्मा