बेटियाँ
फूल – कलियों – सी
होती हैं बेटियाँ
चाँद की चांदनी – सी
होती हैं बेटियाँ
मत तोडो इन्हें
मत घूरो इन्हें
नजर लग जाती है
मुरझा जाती हैं
बड़ी कोमल होती हैं
बेटियाँ ||
प्यार – दुलार – स्नेह
की भूखीं होती हैं
मरूस्थल में भी
बड़ी हो जाती हैं
भार नहीं होती हैं
बेटियाँ ||
मिश्री की ढली – सी
मीठी होती हैं
चंदन में छुपी
शीतलता – सी
प्यारी – प्यारी होती हैं
बेटियाँ ||
जल – जंगल में
धरती और गगन में
पीछे नहीं रहीं
हिमालय के शिखर पर
परचम लहरा रहीं
बेटियाँ ||
मुल्कों की सीमा तोड़ के
परम्पराओं की बेडियां खोल के
नित नये कीर्तिमान रच रहीं
स्वदेश को मेडल दिला रहीं
निज मातु – पिता और गॉव – शहर का
नाम रोशन कर रहीं
बेटियाँ ||
ऐ मनुज आँखें खोल
स्व आत्मा को तोल
मत शैतानी – हैवानी
नजर से इन्हें देख
बेटों की लालच में
मत बेटियों की
चिता पर रोटियां सेक
बेटा तेरा निकल सकता आवारा
पर बेटियाँ बन जाती हैं
बुढापे का सहारा ||
– मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
गॉव रिहावली, डाक तारौली गुर्जर,
फतेहाबाद-आगरा ,283111