ग़ज़ल
क्यों पिलाते हो मुझे जाम कोई
और फिर देते हो इलज़ाम कोई।
ख़ौफ़े रुसवाई से डर जाता हूँ
जब भी लेता है तेरा नाम कोई।
मेरा अंदाज़ अलग है तुमसे
चाहिये मुझको नई शाम कोई
ज़िन्दगी जब से बसी है अपनी
न कोई सुख है न आराम कोई
उसके बिन मैं हूँ अधूराकब से
उनको पहुंचा दे ये पैगाम कोई
मसअला होगा तभी हल राज
ढून्ढ ले फिर से नया काम कोई
— राज सिंह