लड़का अधिकारी था, मां-बाप के रंग-ढंग बदल गये थे ! शादी के लिये लड़के की बोलिया लगने लगी थी, जो 40 लाख देगा वो अपनी लड़की ब्याह सकता है, जो 60 लाख देगा लड़का उसके घर का दामाद बन जायेगा, जो 1 करोड देगा लड़का उनका ! समझ नहीं आता कि वो लड़का वाकई अधिकारी था या भिखारी, जो खुद सक्षम था और दूसरे के सामने पैसो के लिये मुंह फाड़ रहा था और घरवालों से भीख मगां रहा था ! उसे और उसके घरवालों को इससे मतलब नहीं कि लड़की सर्वगुण संपन्न है, उसकी अपनी पहचान है ! सभी उसकी तारीफ़ करते हैं, उन्हे बस पैसा चाहिये था, चाहे फ़िर लड़की घर को भले ना सम्भाले, उसके मां-बाप को इज़्जत ना दे! चाहे लड़के की जिन्द्गी उसके नाज़-नस्क उठाते-उठाते गुजरे ! अरे भाई लड़की के बाप ने 60 लाख दिये, क्युं करेगी लड़की तुम्हारे घर का काम, कोई नौकरानी थोडे है ! अगले 50 सालों का ब्याज सहित पैसा भरा है, बेटी को रानी की जिन्द्गी देने के लिये ! क्युं सुनेगी वो तुम्हारे ताने, तुमने मुह खोल के जितना भाव लगाया उतना तुमको मिल गया, अब जिन्द्गी भर मुंह बंद रखना पडेगा क्युकिं मुंह में इतना ठूस दिया है कि तुम मेरी बेटी की गलती पे मुंह नहीं खोल पाओगे ! वो शादी नहीं सौदा हुआ था, बेटे के भाव लगे मुह मान्गे दाम मिले, और बेटी अपने साथ सोने चान्दी के ढेर लायी तो ऐश करना स्वाभाविक है ! वहीं अगर बिना दाम लिये वही लडकी को लक्ष्मी समझकर लाते तो वही लक्ष्मी धन की देवी के साथ, स्नेह-प्रेम की प्रतिमुर्ति का परिचय देती ! भले मां-बाप धन्वाण हैं लेकिन ससुराल वाले बिना मांग के साथ लाये हैं तो सास-ससुर व पति के लिये अपने को निसार करने में क्या दिक्कत ! खुशी-खुशी खुद को समर्पित कर देगी वह, उसके पिता का मान रखा था तुमने तो तुम्हारे पिता को सम्मान देना उसका कर्तव्य है और वो उसका निर्वाह भी करेगी ! लेकिन लेकिन लेकिन भिखारी की तरह हाथ फैलाये तो और बोलिया लगाई तो सोच लेना! पैसा तो भले हाथ आये लेकिन इज़ज़त… ?
— जयति जैन (नूतन) ‘शानू’……. रानीपुर झांसी