कविता-आंखों के आँसू
अब सुकून से रो भी नही पाते हैं हम
कोई देख न ले बहते आंसू मेरे तो सब
जब सो जाते है तो चुपके से रो लेती हूं
याद है तुमको जब एक बार रोये थे गले लगकर
तो तुम भी बोले थे कि तुम्हे ये बहते आँसू अच्छे नही लगते, आज ये आँसू भी सिर्फ तुम्हारी यादों में
बह रहे है, आज मुझे तुम कही नही दिख रहे हो
महसूस तो करते कि तेरे जाने से टूट कर बिखर जायेगें
फिर क्यों नही साथ ले गये हमे ,जानते हो हम आज
भी बहुत याद करते हैं तुम्हे,तुम्हारी हर बात बहुत
सताती है, याद हैं वो राते जिनमे न जाने कितने
सपने होते थे,हर रोज हम नया ख्वाब देखते थे
कोई जब भी किसी का दिल तोड़ता था हम
हमारे प्यार की मिसाल देकर इतराते थे कि
मोहब्ब्त ऐसी होती है, आज कोई साथ नही मेरे
तुम भी कही दूर नया घर का बसा कर ज़िन्दगी
गुजारने लगे,जानती हूं कि जिम्मेदारियां निभानी
बाकी थी,और आंखों में शायद और भी ख्वाब थे
जो शायद मेरे साथ रहकर न पूरे होते
इसीलिये हमसे दूर जाकर रहने लगें तुम
हमने भी सब सपने छोड़ दिये
तुम्हारे जाने के बाद मंदिर जाना छोड़ दिया
हर मन्नत हर दुआ माँगना छोड़ दिया
वो जो मन्नत का धागा था तोड़ दिया
सब कुछ छोड़ कर बस तेरी यादों में
जी रही हूँ ये मज़बूरी की सांसे ले रहीं हूँ
कब आयेगी सुकून की नींद ये सोच रही हूँ
जब से तुम गये हो एक पल भी नही सो सकी
बस एक बहाना है जो सो भी लेती हूं
कि मिल न सके हकीकत में ख्वाबो में मिल जाऊंगी
और चुपके से तेरे गले लगकर मैं सो जाऊंगी।।
— उपासना पाण्डेय