मैं दीवानी हूं
ठहरी हुई इक झील में,हलचल मचा गया कोई
सोए से थे अरमां मेरे,ख्वाब जगा गया कोई
उसकी गहरी सी आंखों में,धारा सी उतर जाती हूं मैं
उसकी सांसों की गर्मी से,शमा सी पिघल जाती हूं मैं
उसके करीब आकर जैसे,छुईमुई सी सिमट जाती हूं मैं
वो प्राण मेरा मैं काया हूं,वो दर्पण है मैं साया हूं
उसमें बसी सांसें मेरी,मैं तो उसका हमसाया हूं
वो चंदन है मैं पानी हूं,ये सच है मैं दीवानी हूं
वो सुंदर स्वप्न सलोना है,मैं सपनों की रानी हूं
सुंदर रचना !