क्या है अस्तित्व मेरा
मैंने तो अभी जन्म भी नही लिया तो घरवालो ने
लड़का नही लड़की हुई है माँ को ये बोल कर
कितने ताने दिये, पापा भी ख़ुश नही दिखे
क्या कोई गुनाह था मेरा जो इस दुनिया मे आने न दिया,
माँ ने भी न महसूस की तकलीफ मेरी
मुझे तो बस पापा का दुलार और माँ का
निश्छल प्यार चाहिये था मगर मिला क्या।
क्या मैं सबसे अलग थी,कहाँ खो गया था मेरा
अपना परिवार,कही तो कोई अपना नही था।
जिससे कहती मैं ,आने दो मुझे इस जहान में
पापा की उंगलियां थाम कर घूमना चाहती थी।
दादी से रात में कहानियां सुनना चाहती थी।
माँ की गोद मे सिर रख कर सोना चाहती थी।
क्यों रोज पापा माँ को ताने देते रहे , मुझे ग
बड़ी होके मैं तुम्हारा सहारा बनना चाहती थी।
क्यूँ मुझे आने नही दिया इस संसार मे।
मैं खुले बादलो को निहारना चाहती थी।
क्यूँ मुझे आने का हक नही है ,अपने हिस्से
का जीवन जीने का हक नहीं है,
बेटी होने का सब फर्ज निभाती मैं
ये कैसा संसार है लक्ष्मी सबको चाहिये
मगर बेटी नही चाहिये, माँ दुर्गा को तो पूजते हैं
मगर बेटी न जन्म ले ये भी सोचते हैं
धिक्कार है ऐसे लोगो पर,जो कन्याभ्रूण हत्या करते है।
— उपासना पाण्डेय (आकांक्षा)
हरदोई (उत्तर प्रदेश)