आधुनिक भारत की चौथी ऋतु
आज नींद मुर्गे ने नही एक लाउडस्पीकर के शोर ने खोली जो सप्ताह भर बाद की एक चुनावी रैली का आव्हान कर रहा था, कॉलेज जाते वक्त देखा की शहर की जिन जर्जर सड़कों के गड्ढो में हिचकोले खाना लोगो की आदत बन गयी थी, उन पर काली चमकीली डाबर का मरहम लगाया जा रहा था , किनारे बनेे सरकारी भवनों पर रंग-रोगन किया जा रहा था ,आगे गया तो चौराहे पर कभी ईद के चाँद से दिखने वाली ट्रैफिक पुलिस बड़ी मुस्तैदी से तैनात थी,और सालो से शहर की शोभा बने बड़े-बड़े कचरे के ढेरों को नगर परिषद के कर्मचारी बड़ी कर्तव्यपरायणता से बहार फेकने का काम कर रहे थे और गजब की बात तो ये की जो डॉक्टरों के दर्शन का पिपाशु सरकारी अस्पताल आज डॉक्टरों और स्टाफ के होने से जगमगा रहा था। पहले तो हमे ऐसा मालूम हुआ की हम हम कोई दिवास्वपन देख रहे है, परंतु सामने के मैदान में बज रहे भोपू की आवाज सुनकर ये भृम भी टूट गया। जाकर देखा तो वो कुछ दूध से स्वेत वस्त्रधारियों और कोट पेंट वाले प्रशासनिक मुलाजिमो की एक आम जन सभा थी जिसमे हर आदमी के दुःख दर्दो और सालो अटके कामो को वे एक छोटा सा हस्ताक्षर करके जादुई तरीके से सुलझाया जा रहा था , इनमे कुछ वे भी थे जिनको पिछले हप्ते ही मैंने अपना एक काम निपटाने के लिए मिठाई की रस्म अदा की थी, आज वे सब बिना कोई रस्म लिए कार्यरत थे, ये नजारा देख तो हमने तो दाँतो तले उंगली दबा ली की, अच्छे दिन आखिर आ ही गए।
सप्ताह भर बाद आलाकमान के बड़े नेताजी हमारे क्षेत्र में आये और उन्होंनो घोषणा की पानी को तरसते लोगो को पानी के साथ-साथ आरओ उपलब्ध कराया जायेगा, जिन सड़कों पर कालू का टम्पू भी सही से नही निकलता है, उनको फोरलेन के साथ चमकीला बनाया जायेगा, तथा पन्द्रहसो छात्रों पर पांच शिक्षकों वाले स्कूल को डिजिटल बनाया जायेगा, बेरोजगारी को फांसी की सजा दी जायेगी , किसान को राजगद्दी पर बैठाया जायेगा, उद्योगों का बीज बोया जायेगा, आलाकमान के दे धुंआधार दौरे पचौरे और उद्घाटन और शुभारम्भो की मनो लड़ी सी लग गयी थी, अब आपको क्या बताये हमारी कपड़े दुकान से इतने लाल फीते बिके की टर्न ओवर आठ गुना होने से सरकारी एजेंसी ने छापा मार डाला , इन घोषणाओ द्वारा तो नेताजी कुबेर का सारा खजाना ही जनता की जेब में जबर्दस्ती ठूसने का सा यत्न कर रहे थे।
ऐसे में मचती लूट में हमने अपनी बाटीया सेक ली की मतदाता सूची में नाम जुड़ने से पहले ही वर्द्ववस्था पेन्सन सूची में अपना नाम जुड़वाकर अपनी मुट्ठी गरम कर ली । इन दिनों तो हमारा गंगा मैया में डुबकी लगाकर स्वर्ग जाने का सपना भी इस रामराज्य के सामने बोना नजर आने लगा था। ठगदान सम्पन्न हुआ, क्या रहमत का बहुमत दिया था हमने भी नेताजी को वो भी याद करेंगे, नेताजी और उनकी टोली का राज्य में राज्याभिषेक हुआ, लेकिन बहुमत के बाद माहौल तो बिलकुल विपरीत था सारे वादों और दावे खोकले के साथ अपरिग्रही भी महसूस हुये।नेताजी ने तो अपनी खटिया पर अपना मुँह तो छोड़िए पैर तक हमारी ओर करके सोना ही छोड दिया था , इस रहस्य के समाधान में, हमारे एक प्रबुद्ध ने हमे मुर्ख और ज्ञानहीन की संज्ञा देकर बताया कि ‘चुनाव’ आधुनिक भारत की चौथी ऋतु है, जिसमे झूठे वादों और लालच की बौछार होती, जिसमे प्रबुद्ध और महाज्ञानियो एवं तुम जैसे कलम घसीटो को अगुंठाछापो द्वारा ठगा जाता है, उन्होंनो बताया कि इसमें ‘विकास’ पर्व का समय चार माह होता है, हम उनसे इस ऋतु से बचने के कपड़ो की पूछने ही वाले ही थे की उन्होंने हमें टरका दिया।