गीतिका : सवाल-ए-जिन्दगी
कितने सैलाब थे तूफान थे इन आँखों में
ये बता तू मेरी इन आँखों में ठहरा कैसे?
इसमें कुछ तेरी खता का भी बड़ा हाथ रहा
मेरी आँखों में न चढता तो उतरता कैसे?
मेरे कंधों की तरफ देख मुझे दाद तो दे
फिर बताऊँगी तुझे जिन्दगी ढोया कैसे?
पूँछती फिरती हूँ हरएक से सवाल यही
हाथ जब थाम लिया उसने तो बिछड़ा कैसे?
देखती रहती हूँ दिनरात तुम्ही को मै सनम
बन्द आँखों से उतर जाता है पर्दा कैसे?
कई रुसवाइयाँ तेरे इश्क में देखी मगर
खुदा का घर भी तू करूँ न मै सजदा कैसे?
— नीरू श्रीवास्तव “निराली”