पथभृष्ट राजनीति का आईना
कुछ दिन पहले ही गुजरात के एक दलित युवक पर तथाकथित उच्च जाति के कुछ युवक मात्र इस बात पर ब्लेड से हमला कर देते है कि उसने अपनी मुछे लंबी रख ली थी।अगले दिन उस जख्मी युवक के फोटो के साथ समाचार पत्रों में छपी उस खबर ने सारे देश की राजनीती के साथ विशेष तौर पर गुजरात की राजनीति में गर्माहट पैदा कर दी थी, विपक्ष के साथ सामाजिक सगंठनों और जाति के कुछ ठेकेदारों द्वारा गुजरात सरकार पर सवालिया निशान खड़े कर दिए गए थे और कुछ स्वार्थपूरित संगठन तो दलितों पर हो रहे अन्याय के विरोध में किसी भी दंगे और हिंसा को सुलगाने की अपनी नीति भी शायद तैयार कर चुके थे।परन्तु तभी एक खबर आती है कि ये हमला मनगढ़त झूठा हमला था, जो दलित होने का फायदा उठाकर मिडिया और राजनीति में प्रसिद्वि पाने का एक तरीका था ।इस प्रसिद्वि पाने के घिनोने उद्देश्य ने देश के लोगो की भावनाओं को बड़ा आहत कर दिया है।
अब सवाल ये है युवक द्वारा पॉपुलर होने मात्र के लिए ऐसे निकृष्ट तरीके को क्यों अपनाया गया,जो दो वर्गों के बीच में हिंशक झड़प को भी जन्म दे सकता था और कोई बड़ी अप्रिय घटना घट सकती थी । तो एक गहन परीक्षण से देखा जाये तो इस कृत्य में उस युवक का रत्ती भर भी दोष नही है क्योकि उसने देखा और जाना है है कि हमारे देश में आधारभूतऔर गुणवत्ता से पूर्ण एवं राजगार उन्मुख शिक्षा मिलना तो कठिन है ही अगर वो ही नही मिली तो रोजगार मिलना बड़ा दुर्लभ हो गया है । और तो और अगर वो स्वंम का उद्योग या व्यवसाय लगाये तो उसके लिए सरकार की नीतियां बेड़ियों की भांति कठोर है । मान लीजिए अगर वो स्वच्छ राजनीति में जाकर भी समाज हित करने का विचार करता है तो धर्म और जाति तथा वर्गों का प्रतिनिधत्व करने वाले लोलुप नेतागण उसे अपनी झूटी चालो के टिकने नही देगे ये बात भी सर्व विदित है ।
एक ओर जब वो देखता है की ये लोकतान्त्रिक प्रणाली के बादशाह सलामत की तरह ठाट रखने वाले नेतागण अपनी योग्यता ,अनुभव ,गुणो एवं नेतृत्वक्षमता में गौण होते हुये भी, एकमात्र अपनी वर्ग जाति और धर्मवाद पर आधारित ओछी नीतियों से सत्ता पर कब्जा जमाये बैठे हुये है।जिनका चुनावी सफर ही सिर्फ एक वर्ग आधारित हिंसा रैली से शुरू होता है ।जिनको चुनावी विजय के लिए विकास और व्यवस्था सुधार के मुद्दे नही धर्म और समुदाय विशेष के जुमलो की जरूरत पड़ती है। जिनमें नेतृत्व और कार्यकुशलता नही समाजो को बांटने का जन्मजात गुण होता है तथा सुशासन और शांति की नही अगड़ों-पिछडो की राजनीती करते है, ये वे लोग होते है जो समानता और सद्भाव की स्थापना नही बल्कि जो पिछड़े को पिछड़ा और दलित को बार-बार दलित कहकर उसके आत्मबल और सम्मान को ठेस पहुचाते है, तो बड़ी जाहिर सी बात है , थके हारे वे युवा चल पड़ते हैै इस धर्म और वर्ग पर आधारित राजनैतिक जीवन के कुपथ पर नेता बनने। इसी धर्म और वर्ग की राजनीति का परिणाम है गोधरा कांड , गुजरात हिंसा, और मुजफ्फरपुर दंगो के अमिट जख्म जो भारत की वर्ग और धर्म आधारीत राजनीती की सप्रसंग व्याख्या करते है।