गीतिका
देहरी के दीप बन रात दिन जलते रहो
तमस मिटाकर तुम रोशनी करते रहो
राह के कांटे चुन तुम फूल बिछाते रहो
सत्य पथ चुनो और उस पर चलते रहो
जीवन मे सदा ही उच्च विचार रखते रहो
निष्काम कर्म से जीवन उन्नत करते रहो
तूफान झंझावतों में लक्ष्य पर खड़े रहो
अर्जुन से लक्ष्य पर दृष्टि रख लड़ते रहो
साथ दिया और बाती का यूँ निभाते रहो
जीवन के दो पहियों में सफर करते रहो
देश के लिए जिओ ओर सेवा करते रहो
“पुरोहित” दीप भारत माँ का जलाते रहो
— कवि राजेश पुरोहित