गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ज़रा सी ज़िंदगी के वास्ते क्या-क्या गँवाया है ।
कभी रातों जगाया है कभी रातों सुलाया है ।।

ज़रा बैठो तसल्ली से तुम्हें धड़कन सुनानी है
मग़र सुनने से पहले क्यूँ समुन्दर झिलमिलाया है

गुज़ारिश है मेरी तुमसे कि ये ताक़ीद मत करना
मुझे इसने बुलाया है मुझे उसे उसने बुलाया है

ख़ुदा के वास्ते अपने जिगर पे हाथ रख लेना
ज़माने भर के जुल्मों ने मुझे इतना सताया है

बहुत से दर्द झेले हैं जिगर पे चोट खाई है
कहीं जाकर तभी ये फ़न उतर काग़ज़ पे आया है

अकेला हूँ मगर तन्हा नहीं वो साथ है हरदम
मेरे भीतर ये लगता है कि कोई गुनगुनाया है

समुन्दर का भँवर उलझा हुआ तूफ़ान की ज़द में
बढ़ाकर हाथ साहिल ने मुझे यारो बचाया है

किसी का हाथ पकड़ो तो झटक देना मरुस्थल में
ज़माने ने ज़माने को फ़क़त इतना सिखाया है ।

— संजय ‘सरस’, लाडनूं
9929632496

संजय 'सरस'

नाम - संजय शर्मा 'सरस' शिक्षा - स्नातक (विज्ञान) जन्मतिथि - 5.3.1971 व्यवसाय - खनिज व्यापार (पत्थर खदान), कोटा (राज.) कृत्तित्व - बचपन से राजस्थान साहित्य अकादमी से संबद्ध संस्था 'अंकुर' से जुड़ाव एवं निरन्तर सृजन, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर रचनाओं का प्रकाशन साहित्यिक गतिविधियां - राजस्थान एवं प्रदेश से बाहर साहित्यिक गतिविधियों में संलग्न एवं विभिन्न काव्य-गोष्ठियों, कार्यशालाओं, सृजन-साक्षात्कार, पाठक मंच, आंचलिक साहित्यकार सम्मेलन, कवि सम्मेलन, मुशायरों के आयोजन में सक्रियता लेखन विधा : तुकान्त ( गीत, ग़ज़ल, शेर, दोहा, छन्द, कुण्डली, सोरठा, माहिया इत्यादि) अतुकान्त ( गीतिका, नज़्म इत्यादि) लेखन भाषा : हिन्दी, उर्दू, राजस्थानी, ड़िंगळ, पंजाबी, गुजराती आत्म-कथ्य : विशुद्ध आद्यात्मिक सोच लिये बिना व्यावसायिक लाभ-हानि की परवाह किये स्तरीय सृजन करना, कविता मेरी आत्मा का पोषण है, दुनियावी एवं जठराग्नि की आवश्यकताओं के लिये ईश्वर सक्षम है। डाक का पता- 'श्रद्धा-निकुञ्ज' बंगला, करन्ट बालाजी रोड़, पोस्ट : लाडनूं जिला : नागौर राजस्थान पिन कोड : 341306

2 thoughts on “ग़ज़ल

  • प्रीती श्रीवास्तव

    शुक्रिया !

  • विजय कुमार सिंघल

    सुन्दर ग़ज़ल

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