खत
एक एक करके मिटते जा रहे है
मेरे डायरी मे लिखा हुआ
तुम्हारे नाम के खत का आखर
उन तितलियों के भॉति
जो किसी फूल के
मकरंद का रसपान कर उड़ जाती हैं
और फूल जहॉ के तहॉ
बेजान हो अपने स्थान पर पड़े रहते हैं
उसी तरह मेरी डायरी भी
किताबो के ढेर मे वर्षो से
किसी कोने में दबा पड़ा हैं
उस डायरी मे न जाने क्या क्या लिखी हूँ
तुमसे मिलने से लेकर
बिछडने तक की सारी बात्ते
प्यार से लड़ाई तक की अनोखी कहानी
प्रत्येक मौसम के सुहाने रंग के साथ
रस छंद अलंकार का प्रयोग करते हुयें
न जाने तुम पर कितनी कवितायें लिखी
प्रेम की वो सभी बाते जो मैं कह नही पाती
कहती भी तो खूब शर्माती
बहुत सारे सुहाने पल जो
अबतक लौटकर नही आयें
वो सभी बाते को भी
उसी डायरी मे कैद कर रखी हूँ
कि कही तुम मिटते हुये इन आखरों मे से
एक आखर भी पढ लेते तो
फिर दोबारा मुझसे दूर नही हो पातें।
निवेदिता चतुर्वेदी’निव्या’