मुझे पता है
मुझे पता है
तू मुझसे मिलने के लिए
अपनी किस्मत से
लड़ रही होगी
अपनी सखियों की आई डी से
मेरी कविताओं को
छिप छिप कर
पढ़ रही होगी
मुझे यह भी पता है
तू मुझे देखने के लिए
कल्पना की उड़ान
भर रही होगी
कोई देख न ले
तुझे रोते हुए
मुँह छिपाकर
आंगन की सीढ़ियां
चढ़ रही होगी
और जब पकड़ी गयी
भीगी आंखों में
तो उसका दोष
किसी और पर
मढ़ रही होगी
खैर कुछ भी हो
तेरे मेरे प्यार से
पूरी दुनिया सड़ रही होगी
और तू
हाँ तू…
तू अभी भी
मुझसे मिलने के लिए
अपनी किस्मत से
लड़ रही होगी
लड़ रही होगी
महेश कुमार माटा.