वो शाम
मुझे याद है वो शाम
जब तुम पहली बार
मेरे पास आई थीं
आंखे नीचे किये थोड़ा मुस्कुराई थी
तुम्हारी यूं शर्माती नज़रों से
मेरे मन मे एक बात आई थी
जो कह दी थी मैने तुम्हे
और तुम कैसे सकपकाई थी
चाहता तो मैं भी था
थोड़ा सा और पास आऊं
खींच कर अपनी और..
अपने गले से लगाऊं
पर जाने क्यूँ
मेरी अंतरात्मा ने
मुझे वो झाड़ लगाई थी
कि न छू पाया तुम्हे
जो मैंने आस लगायी थी
पर शायद
इसी वजह से
तुम आज तक मेरे साथ हो
दूर हो तो क्या हुआ
मेरे अहसासों में तो पास हो
गर छू लिया होता तुम्हे उस दिन
तो आज ये प्यार जीवित न होता
मन का मन से रिश्ता
यूं प्रेरित न होता
महेश कुमार माटा.