रोहिंग्या समस्या: स्थायी हल जरूरी
हाल के दिनों में म्यांमार में चल रहे जबरदस्त घमासान ने पूरे विश्व जगत को झकझोर रखा है। म्यांमार की सेना द्वारा चलाये जा रहे आतंकवाद विरोधी अभियान से डर कर म्यांमार के रखाइन प्रांत से लगातार रोहिंग्या मुसलमान अपनी जान बचाकर भाग रहे हैं। और इन अवैध रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में शरण देने और न देने को लेकर हमारे देश में भी एक तरह से घमासान छिड़ा हुआ है। जहां हमारी सरकार और कुछ और लोग इन्हें देश की सुरक्षा के प्रति खतरा बता रहें हैं तो वहीं कुछ लोग मानवता के नाम पर इन अवैध शरणार्थियों को भारत में शरण दिये जाने के समर्थन में खड़े हैं। सरकार के समर्थन में खड़े लोगों के अनुसार देश की सुरक्षा के लिहाज से इन शरणार्थियों को बिना किसी शर्त म्यांमार वापस भेज दिया जाना चाहिये। जबकि भारत के 51 प्रसिद्ध लोगों ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर आग्रह किया है कि सरकार को दुनियाभर के सामने मानवता की मिसाल पेश करते हुये रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस नहीं भेजना चाहिए और इन अवैध मुसलमानों को भारत में ही रहने की अनुमति दी जानी चाहिये। पर वहीं, केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू का साफ कहना है कि सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को हर हाल में वापस भेजेगी। और यह पूरी कार्रवाई कानूनी प्रक्रिया के तहत होगी।
इससे पहले केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में भी हलफ़नामा दाख़िल कर कहा है कि अवैध रोहिंग्या शरणार्थी देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। और इन्हें हर हाल में वापस भेजा जायेगा। सरकार इस पूरे मामले को देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था के साथ जोड़ कर देख रही है। हलफ़नामे में रोहिंग्या शरणार्थियों के पाकिस्तानी आतंकियों से कनेक्शन होने की बात भी कही गई है। म्यांमार सरकार के हवाले से भी रोहिंग्या चरमपंथियों के सऊदी अरब, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से लिंक होने के सबूत दिये गए हैं। सुरक्षा बलों को मिली खुफिया रिपोर्टों के अनुसार पाकिस्तान,अफगानिस्तान और इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम देशों के जिहादी इन्हें फंडिंग करते हैं। इतना ही नहीं बल्कि इनमें से बहुत से लोगों के आईएस, हूजी, लश्कर और अल कायदा जैसे आतंकवादी संगठनों से संबंध है। जो भविष्य में भारत के लिए सुरक्षा की लिहाज से भयावह हो सकता है। और यही वजह है कि हमारी सरकार इन अवैध मुसलमानों को भारत में शरण न देने के अपने फैसले पर अडिग नजर आ रही है।
अगर पूरे मामले पर नजर दौराएँ तो यह मामला एक बहुत ही जटिल और पेचीदा मामला नजर आता है। दरासल 25 अगस्त को म्यांमार के सुरक्षा बलों पर रोहिंग्या मुसलमानों के साथ जुड़े अराकान रोहिंग्या सैलवेशन आर्मी ने म्यांमार के रखाइन प्रांत में हमला कर दिया था। इस हमले में 30 पुलिस चौकियों को निशाना बनाया गया था। जिसमें लगभग 10 पुलिस अधिकारियों, एक सैनिक और एक इमिग्रेशन अधिकारी की मौत हो गई थी। इस हमले के बाद म्यांमार सरकार ने एआरएसए को आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया था। और फिर इस संगठन के विरूद्ध ‘क्लियरेंस ऑपरेशन’ चलाया था। जिसके कारण क़रीब तीन लाख रोहिंग्या मुसलमानों को विस्थापित होना पड़ा है। जिसमें से तकरीबन 40 हजार विस्थापित भारत में अवैध रूप से घुस आये हैं।
समुद्र के रास्ते नौकाओं से घुस आये इन अवैध नागरिकों ने भारत के जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, असम, तेलंगाना आदि जगहों पर शरण ले रखी है। भारत के लिए चिंता की बात यह है कि यहां पर वे धीरे-धीरे अन्य मुस्लिम समुदाय में घुल-मिलकर अपनी पहचान छिपाकर वे भारतीय बनने लगे हैं। इसके लिए उन्हें स्थानीय मुस्लिमों का सहयोग भी अब मिलने लगा है। कई लोगों का मानना है कि इससे भविष्य में गंभीर संकट पैदा हो सकता है। क्योंकि शरणार्थियों के कारण संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है और कानून व्यवस्था के लिये भी चुनौती उत्पन्न होती है। ऐसी स्थिती में सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया जाना चाहिये जिससे देश की एकता और अखंडता बनी रह सके।
वहीं दूसरी ओर इन शरणार्थियों के समर्थकों की बातें भी विचारणीय हैं क्योंकि सिर्फ म्याँमार ही नहीं बल्कि तिब्बत के भी लगभग 1,20,000 शरणार्थी भी शांतिपूर्वक तरीके से देश के विभिन्न जगहों पर शरण लिए हुए हैं। यही नहीं बल्कि भारत श्रीलंका, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों से विस्थापित हुये सैकड़ों शरणार्थियों का घर भी है। और इस लिहाज से रोहिंग्या शरणार्थियों का समर्थन कर रहे बुद्धिजीवियों को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। पर यहां एक और बात याद रखनी होगी कि देशहित सर्वोपरि होता है और किसी भी कीमत पर इससे समझौता नहीं किया जा सकता। और साथ ही हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि रोहिंग्यायों के पीछे लगे मुसलमान शब्द को लेकर जो लोग भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा को भी नजर अंदाज कर सरकार को मानवता का पाठ पढ़ाने में लगे हैं मानवाधिकार के उन स्वयंभू ठेकेदारों ने कभी भी कश्मीरी पंडितों तथा पाकिस्तानी हिंदुओं के पलायन के संदर्भ में आज तक एक शब्द नहीं कहा है। जो इस देश के लिए काफी दुर्भाग्यपूर्ण है।
किंतु इस मामले पर रोहिंग्यायों के निर्वासन को लेकर शोर मचाने से पहले भी हमें इस बात पर गौर करना होगा कि रोहिंग्या मुसलमानों का वास्तविक निर्वासन सोचने जितना सरल नहीं है, क्योंकि यहाँ सरकार के समाने सबसे बड़ा सवाल यह है कि रोहिंग्याओं को म्यांमार वापस कैसे भेजा जाए? अर्थात जब म्यांमार उन्हें अपने नागरिक के रूप में स्वीकार करने को तैयार ही नहीं है तब वह उन्हें अपने सीमा में घुसने की अनुमति क्यों देगा? और रही बात बांग्लादेश की तो वह खुद ही लाखों रोहिंग्या शरणार्थियों का घर बन हुआ है,जहां वे नर्क की यंत्रणा भोगने को मजबूर हैं। दूसरी तरफ इस देश के बहुत से वामपंथी उनके हमदर्द बने बैठे हैं,जो उनके लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा तक खटखटा चुके हैं। और उनके हस्तक्षेप के कारण यह ममला अब सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इस तरह से रोहिंग्यायों के निर्वासन का मुद्दा एक जटिल विषय बन गया है। और अब इस समस्या के उचित समाधान के लिए हमारी सरकार को कोई बहुत ही कारगर कदम उठाने की आवश्यकता है;जिससे ये समस्या जड़ से समाप्त हो सके।
इस समस्या के समाधान के मद्दे नजर हमारी सरकार को सबसे पहले रोहिंग्या शरणार्थियों को आवश्यकीय सुविधाएं मुहैया करानी चाहिये। और साथ ही इस मामले में अपने रूख पर अटल रहते हुए म्यांमार की आंतरिक समस्या में उसके साथ खड़ा रहना चाहिये।
भारत को रोहिंग्या बहुल इलाके के विकास के लिए म्यांमार को विशेष सहायता की पेशकश को भी आगे बढ़ाना चाहिये। और साथ ही उसे बांग्लादेश में रह रहे शरणार्थियों को संभालने के लिए जरूरी आधारभूत संरचना तैयार करने में भी बांग्लादेश की मदद के अपने प्रस्ताव को अमली जामा पहनाने में देर नहीं करनी चाहिये।
हमें बड़ी गंभीरता के साथ यह याद रखना होगा कि भारत में शरणार्थियों को शरण देने की जो परंपरा रही है उसके अनुरूप उन शरणार्थियों ने कभी भारत की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था को बिगाड़ने का काम नहीं किया है। जबकि रोहिंग्याओं के मामले में ऐसा नहीं हो पाया है। क्योंकि प्रारंभिक स्तर पर भारत सरकार ने कुछ रोहिंग्याओं को शरण देने का प्रयास किया था मगर इसके तुरंत बाद ही उन्होंने भारत में विरोध प्रदर्शन आरंभ कर दिये थे,जिससे हमारे देश में स्थितियां बिगड़ने को हो चली थी। ऐसे में हमें अपनी सरकार पर भरोसा रखते हुये मानवता के नाम पर देश को समस्याओं का ढांचा बनने से बचाने की पहल करनी होगी।
मुकेश सिंह
असम
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(लेखक युवा स्तंभकार हैं)
सर,मैंने इन बिन्दुओं को भी अपने लेख में लिखने का प्रयत्न किया है।
किया पाकिस्तान ने कोई पेशकश की है किः वोह शर्नाथिओन को ले लेंगे ? हैं तो वोह मुसलमान ही ! फिर हम को किया पडी जब किः हम पहले ही इन अतन्किओन से जूझ रहे हैं . उधर लाखवी और मसूद बाहें उलार उलार के भारत के खिलाफ बोल रहे हैं . जब यह रोहिंगिया सैटल हो गए तो फिर इन में से ही जहादी पैदा होने लगेंगे .