सामाजिक

विकास सिर्फ विकसितो की विरासत

आज के सरकारी विज्ञापनो और उनकी की ठगन कला का मुरीद सा हो गया हूँ मैं, जो मुल्क के सोते जागते नागरिक को अपने चमकीले आकर्षक लाजमे से ये समझाने को उतावले है कि देखिये हमारे भारत की विकास दर जो नित दिन आसमान छू रही है,और कैसे विदेसी निवेश भारी मात्रा में भारत आ रहां है, इससे हम कैसे सबसे तीव्र विकासशील देशो की श्रेणी में आगे ही आगे खड़े नजर आ रहे है। इस देख तो हर भारतीय का सीना छप्पन इंच का सा फूल जाता है, हर कोई ये उवाच करे की वाहः रे राम क्या विकास की गंगा बहाई तूने की हम सबसे विकासशील अर्थव्यवस्था की धनी है, परन्तु ये गर्व की बाते देश आम नागरिकों के मुंह से कतई शोभा नही देती क्योकि आजाद भारत के 50 साल विकास और निवेश के बाबजूद आमजन आज भी उसी हाशिये पर नजर आता है जिस पर अंग्रेजी हुकूमत और राजतंत्र के समय आया करता था।

बस कुछ बदला है तो वो है तरीके, वो वर्तमान में भी मजबूर है वही लचर सी जिंदगी जीने में जिससे बदहाली और गरीबी का चोली दामन का साथ होता है, फिर ऐसे क्या कारण रहे की उदारीकरण के दौर से ही जन्मे पूंजीवाद ने, क्यों भारत के उस तबके को अनदेखा ही छोड़ दिया जो आज भी अधपेट सोता है और कुपोषण से जिसका पुराना नाता रहा है, ऐसा क्यों की इस वैश्वीकरण ने क्यों भारत को अशिक्षा मुक्त नही किया! इसी औधोगिक प्रगति की देन कही जाने वाली “हरित क्रांति” की छत्रछाया में  क्यों भारत का भविष्य (बच्चे) आज भी भूखा है! और तो और इस भुखमरी की 119 देशों की दौड़ में हमे ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने 100 वाँ स्थान देकर समान्नित तक कर दिया है।आज बिहार का युवा वर्ग सिर्फ इसलिये बौना रह जाता क्योकि  उन्हें पोष्टिक तो छोड़िए दो वक्त का भोजन तक नही मिल पाता है, जिन बालिकाओं में रक्त और हीमोग्लोबिन की कमी है वो कैसे एक स्वस्थ मानव को जन्म दे पायेगी!

जो चर्चा से ज्यादा चिंता का विषय है पर सुने कौन! व्यवस्था चाहे स्वास्थ सेवाओं की हो या शिक्षा की आम नागरिक को वो समावेशी लाभ आज तक नही मिल पाया है जिसके वे हकदार है।अब प्रशन ये की ऐसा क्यों होता  है जबकि हमारी सरकारे तो ढिंढोरा पीट रही है,चलो सरकार को  एक बार छोड़ये वैश्व स्तरीय एजेंसियां भी यही कह रही है कि भारत दिन दोगुनी रात चौगुनी गति से विकास कर रहा है,उसकी अर्थव्यवस्था उसकी पूंजी तीव्र गति से बढ़ रही है।अंततः ये बात भी अटल सत्य है कि विकास जमकर हो भी  रहा है,इसलिए तो हर वर्ष देश में  करोड़पतियों की संख्या भेड बकरियों की तरह बढ़ रही है,बीते कुछ सालों में विदेशी निवेश भी देश में पानी की तरह आया है,अर्थव्यवस्था और सकल घरेलू उत्पाद(GDP) के साथ विकास दर में तीव्र उछाल आया है, पर वो सारी स्मृद्धिया आम भारतीय जनता के लिए नही बल्कि कुछ मुट्ठीभर हुक्मरानो को मिली है जो विगत सदी से भारतीयों के लिए बड़ी साधारण से बात हो चली है।

आपको जानकर आश्चर्य होगा की देश की कुल सम्पतियों का 53 प्रतिशत हिस्सा तो मात्र देश के 1 प्रतिशत अमीर परिवारों के पास है,यानि अगर देखा जाये तो ऊपर के केवल 10 प्रतिशत लोगो के पास देश की सम्पति का 76 प्रतिशत हिस्सा जमा है,और बाकि 90 प्रतिशत आम नागरिकों के पास सम्पति का मात्र 23 प्रतिशत हिस्सा है।तो भला कोई कैसे कह सकता है कि अर्थव्यवस्था सुधरी नही, विकास हुआ नही, सम्पति बड़ी नही, सब कुछ हुआ साहब लेकिन कुछ मुठ्ठीभर लोगो के लिए, अगर देश हित में कुछ हुआ तो वो ये की जो विकास “समावेशी शैली” की दुहाई देकर किया गया था, उसने उल्टा भारत के गरीब को और गरीब और अमीर को अमीरात का शहंशाह बना डाला,और दोनों के बीच में आर्थिक असमानता की ऐसी खाई खड़ी कर दी जो शायद कभी क्रांति का कारण बने, तो जनाब माफ़ कीजिये भारत की जनता को ऐसा विकास नही चाहिए।

दिपेन्द्र सिंह चौहान

दिपेन्द्र सिंह चौहान

अलवर राजस्थान. सिविल सेवा परीक्षा प्रतियोगी तथा साहित्य प्रेमी मेरे द्वारा अनवरत रूप कुछ समाचार पत्रों के लिए विभिन्न मुद्दों पर लेखन कार्य की जा रहा है । तथा आपकी पत्रिका के लिए लेखन कार्य हेतु अति उत्सुक । मोबाईल नम्बर-8426917511 ईमेल[email protected]