फुटपाथ
काश मुझको भी बुलाता कोई ।
मेरें सपनो को बचाता कोई ।
मन में बैठे है ताप शीत मेरे ।
भाव लाया हूँ ,उर के, मीत मेरे!
कोई इनको खरीद लो आकर ,
आज अधरों के मधुर गीत मेरे।
मेरे छंदो को सुरों से अपने ,
काश! आ करके सजाता कोई ।
काश…………………………
भूख से जंग कहीं जारी है ।
कहीं मानव पे श्वान भारी है ।
कहीं पैबंद ढक रहे तन को,
कहीं फैशन भरी उघारी है ।
हाय एक घोर तिमिर की वेला,
काश! एक दीपक जलाता कोई।
काश!……………………
स्वप्न मेरे,कहाँ साकार हुए ?
टूट कर देखो ,जार जार हुए ।
मैं गरीबी में नही टूटा हूँ,
अहं पे मेरे कई वार हुए ।
हाय! फुटपाथ की गहन पीड़ा,
राजधानी को बताता कोई ।
काश……………………
— डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी