कविता

हारिये न हिम्मत तब तक

हारिये न हिम्मत तब तक
जब तक हड्डियों में जान बाकी है ।
करना है संघर्ष तुम्हें
जब तक जीत का मैदान बाकी है ।
हारिये न हिम्मत तब तक
जब तक हड्डियों में जान बाकी है ।
मंजिल को ही जुनून जान लो
जब तक आत्मा रूपी प्राण बाकी हैं ।
रुकना नहीं बेशक धीरे चलो
जब तक जीतने के अरमान बाकी हैं ।
हारिये न हिम्मत तब तक
जब तक हड्डियों में जान बाकी है ।
कर्म के आगे रिश्ते भी फीके
बस यही बताना गुणगान बाकी है ।
केवल दोस्ती तब तक न करना
जब तक दोस्त का एहसान बाकी है ।
गुनगुनाते रहो गीत जिंदादिली के
जब तक सुर की मिलनी कमान बाकी है ।
हारिये न हिम्मत तब तक
जब तक हड्डियों में जान बाकी है।
कुछ नया सीखने की करो हर पल
चाहे न रही शिखर की  उड़ान बाकी है ।
आलोचना उपहास को मन से भगाओ
जब तक मिलनी वो पहचान बाकी है।
मलिक ने किया आगाज़ कर्म का
क्योंकि इसकी धरा पर मिसाल बाकी है।
हारिये न हिम्मत तब तक
जब तक हड्डियों में जान बाकी है ।
कृष्ण मलिक

कृष्ण मलिक

मेरा नाम कृष्ण मलिक है । अम्बाला जिले के एक राजकीय विद्यालय में व्यवसायिक अध्यापक के रूप में कार्यरत हूँ । योग्यता में ऑटोमोबाइल इंजीनियर हूँ । कम्प्यूटर चलाने में विशेष रुचि रखता हूँ। दिल्ली, मध्य प्रदेश, लखनऊ , हरियाणा , पंजाब एवम् राजस्थान के समाचार पत्र में मेरी रचनाएँ छप चुकी है । दिल्ली की सुप्रसिद्ध पत्रिका ट्रू मीडिया में अगस्त के अंक में मेरी एक रचना प्रकाशित हो रही है । बचपन में हिंदी की अध्यापिका के ये कहने पर कि तुम भी कवि बन सकते हो , प्रेरणा पाकर रचनाओं की शुरुआत की और 14 वर्ष की उम्र से ही कुछ न कुछ तत्व को पकड़ कर लिखना जारी रखा । आज लगभग 12 वर्ष बीत गए एवम् 150 के आस पास आनंद रस एवम् जन जागृति की काव्य एवम् शायरी की रचनाएँ कर चुका हूँ।