सोचने का ठेका
नेता अवनी प्रसाद प्रचंड मतों से लोकसभा के लिए चुने गए थे । मंत्री बना दिये गए । जीत की खुमारी उतरने के बाद अवनी प्रसाद को कुछ करने की धुन सवार हुई । अपनी ही सरकार के केंद्रीय मंत्रियों के चक्कर काट कर उन्होंने अपने चुनाव क्षेत्र के लिए कई विकास कार्य स्वीकृत करा लिया। उन्हीं में से क्षेत्र में पीने के पानी की व्यवस्था व रामनगर में एक बड़े फ्लाईओवर का निर्माण भी शामिल था । कुछ ही दिनों में फ्लाईओवर के निर्माण का ठेका एक चीनी कंपनी को दे दी गयी । क्षेत्र के कई गांवों में सड़कों के किनारे बड़े बड़े पाइप भी पहुंचा दिए गए थे । इन योजनाओं का काम आगे बढ़ाने की मंजूरी लेने के लिए संबंधित विभाग के मुख्य सचिव मंत्रीजी से मिले । उन्होंने जानकारी दी ” इस योजना में लगनेवाले पाइप्स की व्यवस्था हो गयी है । यदि आप आदेश दें तो इस योजना का अगला चरण शुरू किया जाय ताकि जल्द ही जनता से किया आपका वादा पूरा किया जा सके । ” मंत्रीजी ने बड़े ही धैर्य से मुख्य सचिव की बात सुनी और रहस्यमय स्वर में बोले ” बाबू राममिलन जी ! आपने आदेश के मुताबिक गांव गांव में पाइप पहुंचवा दिया । इसके लिए आपका धन्यवाद ! अब आप अगले आदेश तक उसको जहां है जैसे है वैसा ही पड़ा रहने दीजिए । वो क्या है न कि आप अभिये पानी घर घर में पहुंचा देंगे तो अगली बार हम क्या कहकर वोट मांगेंगे ? पानी न सही पानी का पाइप दिखाकर ही एक बार और वोट मांगा जा सकता है । ” सचिव के चेहरे पर कुछ ना समझने का भाव देखकर नेता जी मुस्कुराए ” जाइये जाइये राममिलन जी ! ज्यादा न सोचिए ! जनता के लिए ,सोचने का ठेका हमको न मिला है ! आप काहें परेशान हो रहे हैं ? “
नेता लोग जनता के साथ ऐसी ही चालबाजी किया करते हैं।
सहमति व उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद आदरणीय ।
प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, यथार्थ को दर्शाती लघुकथा बहुत सुंदर लगी. वोट के लिए कुछ भी करेगा! अत्यंत सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.
आदरणीय बहनजी ! आपने सही कहा है इन नेताओं का शायद यही घोषवाक्य हो ‘ वोट के लिए कुछ भी करेगा ‘ । अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद ।
राजकुमार भाई , ऐसी ही गन्दी सिआसत है भारत की . यह तो पाइप फिट कर ही दिए गए , वर्ना सभ कुछ पेपरों में ही बन कर रह जाता है . बहुत अछि लघु कथा .
आदरणीय भाईसाहब ! आपने बिल्कुल सही कहा व सही समझा है । भारत की सियासत वाकई कुछ कुछ ऐसी ही है । अभी दिल्ली में एक वाकया हुआ था मौके से सड़क ही गायब हो गयी थी जबकि कागज में वह सड़क मौजूद थी और उसपर करोड़ों रुपये खर्च हुए थे ।
आप इन छोटी छोटी राजनितिक बिद्रुप्ताओ को उजागिर कर सराहनीय काम कर रहे है राजकुमार जी ! कलम से कमाने वाले तो बहुत लोग है , कलम से गंवाने वालो का उदय शुभ संकेत है /
सराहना के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय पांडेय जी !