गज़ल
मेरी जिंदगी की भी एक अजीब सी दास्ताँ रही
जैसे किसी बच्चे की खिलौने में अटकी जाँ रही
जमी जायदाद सोना चाँदी रख दिया मेरे भाई ने
मेरी नजरों में सबसे बड़ी दौलत वो मेरी माँ रही
आज तक दिवारों से सर लगाकर रोता है अमीर
वो ये सोचकर क्या दौलत थी मेरी अब क्या रही
जिंदगी मेरी जलती है अब खुदा की शमाँ बनके
चरागों की ये जिंदगी बस अब बनकर धुआ रही
खुदा के अलावा मैं किसी के सामने झुका नहीं
मेरे साथ सफलता बनकर मेरी माँ की दुआ रही
जलानें की फ़िराक में थे खूशी का दामाँ आकाश
जल न पाया दामाँ क्यों की बुझाती मेरी माँ रही
आकाश राठोड