गीतिका/ग़ज़ल

“गीतिका”

छंद – “विष्णु पद ” (सम मात्रिक )मापनी मुक्त, शिल्प विधान – चौपाई +10 मात्रा ।, 16,10 = 26 मात्रा ।, अंत में गुरु गुरु अनिवार्य

खुलकर नाचो गाओ सइयाँ, मिली खुशाली है

अपने मन की तान लगाओ, खिली दिवाली है

दीपक दीपक प्यार जताना, लौ बुझे न बाती

चाहत का परिवार पुराना, खुली पवाली है॥

कहीं कहीं बरसात हो रही, सकरे आँगन में

हँसकर मिलना जुलना जीवन, कहाँ दलाली है॥

होना नहीं निराश आस से, सुंदर अपना घर

नीम छाँव बरगद के नीचे, जहो जलाली है॥

डाली कुहके कोयल गाती, भौंरें जगह जगह

हर बागों के फूल खिले से, महक निराली है॥

क्या कार्तिक क्या जेठ दुपहरी, कैसी है बरखा

कजरी झूले अपना झूला, ललक खयाली है॥

आया “गौतम” घूम घाम के, तरुवर झाँकी रे

कहाँ सुखद विश्राम मिला मन, नेह लगाली है॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ