ग़ज़ल
दोस्ती यारी निभा कर चल दिए ।
बेवफा मुझको बता कर चल दिए ।
मुफलिसी का दौर भी अच्छा ही था
दोस्त आये , आजमा कर चल दिए ।
जो मिरी कश्ती के खेवनहार थे
बीच धारे में वो लाकर चल दिए ।
मानते थे जिनको अपनी जिंदगी
बज्म में नजरें झुका कर चल दिए ।
दिल नहीं लगता इबादत में मगर
मन्दिरो में सर झुकाकर चल दिए ।
याद उनकी अब सहादत है कहाँ
देश पे जो जा लुटाकर चल दिए ।
धर्म कदमों में तू जिनके था बिछा
दिल भरा ठोकर लगा कर चल दिए
— धर्म पाण्डेय