गजल : संग हवा लहराऊँ!!
आज कंगनवा हठ कर बैठे, कैसे हाथ चढ़ाऊँ
आज लगे श्रृंगार अधूरा, कैसे मन समझाऊँ
सतरंगी सपने आंखों में, करते धींगा मस्ती
नेहपगी पलकें बोझिल हैं, कैसे में झपकाऊँ
उलझन भटकन साथ खड़ी है, यह अधीरता कैसी
जैसे ही तुम नाम पुकारो, बलिहारी मैं जाऊँ
वासन्ती चूनर ओढ़ी है, भाव सजे रंगीले
बाट जोहती खुशहाली को, मैं तो अंग लगाऊँ
हर आहट पर कान बजे हैं, बजती है पैंजनिया
रोम रोम में सिहरन ऐसी, संग हवा लहराऊँ
हौले से तेरा सन्देशा, जैसे हाथ लगा है
ऐक मधुर ऐहसास लिए अब, चहकी चहकी जाऊँ
तेरे नाम किये हैं मैंने, रातजगे बहुतेरे
अँखियों ही अँखियों में तुझको, भोर आज दिखलाऊँ
— बृज व्यास