लघु कथा-ध्यान
“अरे सुमन,तुम अपने बच्चों के प्रति कैसी लापरवाह हो;अभी कितने छोटे हैं और तुम उनपर ध्यान ही नहीं रख रही हो।मैं कब से देख रहा हूँ कि तुम्हारा लड़का उस उबड़-खाबड़ जमीन पर दो बार गिर चुका है और वह तुम्हारी लड़की झूले पर चढ़ने के प्रयास में गिर गई लेकिन तुमने उन्हें उठाकर चुप कराना भी ठीक नहीं समझा।तुम बस अपने निंदाई-गुड़ाई के काम में ही तल्लीन रही।क्या यह दो-तीन साल के बच्चों की परवरिश के लिहाज से उचित है।”मैंने लॉन में अपनी कुर्सी पर बैठे-बैठे ही बगीचे में काम कर रही सुमन से कहा।
“बाबूजी,बच्चे गिरेंगे-पडेंगे नहीं तो मजबूत कैसे होंगे।उन्हें भी तो आगे जिन्दगी की लड़ाई लड़ने के लिए अपने बल पर ही तैयार होना होगा।मैं इस तरह ध्यान रखकर उन्हें कमजोर नहीं करना चाहती”,सुमन ने मेरी बात का जवाब दिया।
सुमन की बात ने मुझे सोचने पर विवश कर दिया क्योंकि अभी कुछ समय पूर्व ही तो बहू ने लगभग चिल्लाते हुए कहा था कि क्या पापाजी आप अखबार पढ़ने में ऐसे खो जाते हैं और उधर रिंकु यदि कुर्सी से गिर जाता तो!क्या इतना भी ध्यान आप नहीं रख सकते?
रोचक लघुकथा
धन्यवाद जी