लघुकथा

लघु कथा-ध्यान

“अरे सुमन,तुम अपने बच्चों के प्रति कैसी लापरवाह हो;अभी कितने छोटे हैं और तुम उनपर ध्यान ही नहीं रख रही हो।मैं कब से देख रहा हूँ कि तुम्हारा लड़का उस उबड़-खाबड़ जमीन पर दो बार गिर चुका है और वह तुम्हारी लड़की झूले पर चढ़ने के प्रयास में गिर गई लेकिन तुमने उन्हें उठाकर चुप कराना भी ठीक नहीं समझा।तुम बस अपने निंदाई-गुड़ाई के काम में ही तल्लीन रही।क्या यह दो-तीन साल के बच्चों की परवरिश के लिहाज से उचित है।”मैंने लॉन में अपनी कुर्सी पर बैठे-बैठे ही बगीचे में काम कर रही सुमन से कहा।

“बाबूजी,बच्चे गिरेंगे-पडेंगे नहीं तो मजबूत कैसे होंगे।उन्हें भी तो आगे जिन्दगी की लड़ाई लड़ने के लिए अपने बल पर ही तैयार होना होगा।मैं इस तरह ध्यान रखकर उन्हें कमजोर नहीं करना चाहती”,सुमन ने मेरी बात का जवाब दिया।

सुमन की बात ने मुझे सोचने पर विवश कर दिया क्योंकि अभी कुछ समय पूर्व ही तो बहू ने लगभग चिल्लाते हुए कहा था कि क्या पापाजी आप अखबार पढ़ने में ऐसे खो जाते हैं और उधर रिंकु यदि कुर्सी से गिर जाता तो!क्या इतना भी ध्यान आप नहीं रख सकते?

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009

2 thoughts on “लघु कथा-ध्यान

  • विजय कुमार सिंघल

    रोचक लघुकथा

    • डॉ प्रदीप उपाध्याय

      धन्यवाद जी

Comments are closed.