लघुकथा

अधूरा सौदा

अमर औसत कद काठी का आकर्षक नवयुवक था । एक निजी कंपनी में जूनियर एग्जीक्यूटिव के पद पर तैनात था । उसकी ऑफिस हेड रुबिका मैडम एक अधेड़ आधुनिक महिला थी जो अपने मातहतों से रूखे व्यवहार के लिए जानी जाती थी । लेकिन अमर जब भी किसी काम से उसके केबिन में जाता रुबिका की निगाहें उसे अजीब तरह से घुरतीं और अमर नजरें नीची किये जल्दी से केबिन से बाहर आ जाता । रुबिका की खनकती हंसी उसके पीछे पीछे केबिन से बाहर तक आ जाती ।
एक दिन अमर के बड़े भैया सुधीर की अचानक दोनों किडनी बेकार हो गयी और लंबे इलाज के बाद उनका डायलिसिस शुरू हो गया । डॉक्टर ने किडनी प्रत्यारोपण के लिए सात लाख रुपये का खर्च बताया था । इसलिए अमर चिंतित व परेशान था । अपने घर की हालत से अनजान नहीं था अमर । कुल जोडबटोरकर रुपये दो लाख का प्रबंध किया जा सकता था लेकिन और पांच लाख रुपये कहाँ से आएंगे ? कंपनी से लोन पाने की आस लिए अमर ने रुबिका मैडम के केबिन में पहुंच कर उनसे पुरा हाल बता कर लोन के लिए अपनी मंजूरी देने की विनती की । हमेशा की तरह उसे अजीब सी निगाहों से घूरती हुई रुबिका ने कहा ” देखो अमर ! मेरे सिफारिश कर देने से कंपनी तुम्हें पांच लाख का लोन तो दे देगी लेकिन मुझे क्या मिलेगा ? ”
” आप उसमें से जो रकम लेना चाहें ,ले लें मैडम लेकिन मुझे कंपनी से लोन दिला दें । बाकी का प्रबंध मैं कर लुंगा । ” अमर ने विनती की ।
” तुम जानते हो मुझे पैसे की कोई लालच नहीं । अगर देना ही चाहते हो तो …..” कहते हुए रुबिका उठकर अमर के पास आ गयी थी और बड़ी अदा से उसके कंधे पर हाथ रखकर उसकी आंखों में झांकते हुए बोली ” तुम्हें कुछ समय मेरे साथ ……….. । ”
फिर धीरे से उसके गालों को थपकते हुए बोली ” सोच लो ! मंजूर हो तो कल सुबह ग्यारह बजे होटल अशोका में रूम नंबर 207 में आ जाना । सौदा बुरा नहीं है । ”
रात भर करवटें बदलते अमर सोचता रहा लेकिन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा । सुबह तैयार होकर घर से निकला । दस बज चुके थे । ऑटो वाले को होटल अशोका चलने के लिए कहकर वह हाथ में थमी फाइल के पन्ने पलटते लगा । होटल अशोका के सामने उतरकर अमर उसके बगल की इमारत में घुस गया । इमारत के सामने के हिस्से में बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था STATE BANK OF INDIA और लगभग दस मिनट बाद वह बैंक के मैनेजर के कक्ष में बैठा लोन के लिए आवेदन कर रहा था ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

6 thoughts on “अधूरा सौदा

  • रविन्दर सूदन

    आदरणीय राजकुमार जी,
    बहुत सुन्दर रचना के लिए बधाई। सौदागर को सौदे के अनुभव नहीं थे हर चीज बिकाऊ
    नहीं होती अन्यथा सौदा अधूरा नहीं रहता । आत्मा की आवाज सबसे बलशाली होती है
    यदि कोई इसे अनसुना न करे ।

    • राजकुमार कांदु

      आदरणीय रविंदर भाई जी ! आपने सही फरमाया है आत्मा की आवाज सबसे बलशाली होती है । और अमर की अंतरात्मा की आवाज ने रुबिका मैडम के प्रस्ताव को अधूरा सौदा बना दिया । सुंदर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अछि कहानी ,राजकुमार भाई .

    • राजकुमार कांदु

      अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से धन्यवाद आदरणीय भाईसाहब !

  • विजय कुमार सिंघल

    प्रेरक लघुकथा !

    • राजकुमार कांदु

      धन्यवाद आदरणीय !

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