कविता-तुम्हारे लिये ख़त
सुनो प्रिये कुछ खत लिख रही हूं जब आना तब
खुद ही पढ़ लेना हर रोज सिर्फ़ तुमको याद किया
रोज निहारा उस रात के चांद को
हूबहू तुमसा लग रहा था जैसे तुम दूर
हो हमसे वो भी वैसे ही मुस्कुरा रहा था।
निगाहों से दूर हो तुम भी वैसे ही
सुनो हर रात को सब सो जाते है
बस चुपके से तब हम भी रो लेते है
सुनो जब कोई खबर मिलती है तुम्हारी
हम भी चुपके से मुस्कुरा लेते हैं आईने के सामने
सुनो वो लाल बिंदी रोज लगाती हूं
वो लाल साड़ी जो पसन्द थी बहुत
उसको भी सहेज कर रखा है मैंने
वो जब हम गए थे शिमला शादी के बाद
वो वाली तस्वीर आज भी देख लेती हूँ
तुमने जब प्यार से गले लगाया था हमे
वो खुशबू प्यार की आज भी छुपा रखी है मैंने
मेरे हाथों को थामा था तुमने जब पहली बार
वो मोहब्बत का खास एहसास आज भी है मेरे पास
बस आ जाओ एक बार देख लो कि
तुम्हारे बिना कितना बुरा है हाल।।
— उपासना पाण्डेय (आकांक्षा), हरदोई ( उ.प्र.)