शायद मैं बड़ा हो रहा हूँ!
अपने अरमानो का गला घोंटकर ,
आजकल मैं छुपके से रौ रहा हूँ,
शायद मैं अब बड़ा हो रहा हूँ!
अतीत की दुनिया को छोड़ भावी सपनो में खो रहा हूँ ,
शायद अब मैं बड़ा हो रहा हूँ!
आँखों में आरजू ए मोहोबत है ,
अब चैन की नींद कहाँ सो रहा हूँ?
शायद अब मैं बड़ा हो रहा हूँ!
माँ की ममता अवरुद्ध ,पापा का भी मन अब नही मोह रहा हूँ!
शायद अब बड़ा हो रहा हूँ!
बचपन की मासूमियत छुप गई ,
अब तो उजाले की और अँधेरा ढ़ो रहा हूँ,
शायद अब मैं बड़ा हो रहा हूँ!
बच्चा बन फिर से घर बनाने की कला को संजो रहा हूँ,
शायद अब मैं बड़ा हो रहा हूँ!
— पवन अनाम