भाषा-साहित्य

भाजपा क्यों लगने दे, यह कलंक?

उत्तरी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली का नगर निगमों पर भाजपा का कब्जा है। ये दोनों निगमें ऐसे भयंकर काम करने जा रही हैं, जिन्हें गुरु गोलवलकर या दीनदयाल उपाध्याय देख लेते तो अपना माथा कूट लेते। इन दोनों निगमों के दिल्ली में 1700 स्कूल हैं। इन स्कूलों की नर्सरी और पहली कक्षा के बच्चों को अब हर विषय अंग्रेजी माध्यम से पढ़ना होगा। यह अनिवार्य होगा। धीरे-धीरे सभी कक्षाओं में अंग्रेजी माध्यम अनिवार्य करने की कोशिश की जाएगी। गजब की मूर्खता है, यह ! अभी तक तो देश में झगड़ा यह था कि बच्चों को अंग्रेजी एक विषय के तौर पर पढ़ाई जाए या नहीं ? अब होनेवाला यह है कि सारे विषय अंग्रेजी माध्यम से ही पढ़ाए जाएं। यह विचार जिस दिमाग में उपजा है, उसका ठस्स होना, उसका गुलाम होना, उसका नकलची होना अपरंपार है। उनका यह विचार बाल-शिक्षा के समस्त सिद्धांतों के विरुद्ध हैं।

मैंने आज तक किसी भी बाल-शिक्षा विशेषज्ञ को इतना मूर्खतापूर्ण विचार प्रस्तुत करते हुए नहीं पाया। बल्कि उल्टा पाया। दुनिया के श्रेष्ठतम शिक्षाविदों का कहना है कि बच्चों की शिक्षा का माध्यम उनकी मातृभाषा ही होनी चाहिए। ऐसा होने पर उनकी मौलिकता बनी रहती है, स्मृति प्रखर रहती है, समय कम लगता है, आत्म-विश्वास बढ़ता है और विदेशी भाषा का माध्यम होने पर वे रट्टू तोते बन जाते हैं, उनकी बुद्धि कुंद हो जाती है, उनकी सीखने की क्षमता मंद पड़ जाती है और उनका आत्मविश्वास घट जाता है। अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई देश में लाॅर्ड मैकाले की औलादों को पैदा करता है। अंग्रेजी के चलते देश में करोड़ों बच्चे हर साल अनुत्तीर्ण होते हैं और वे पढ़ाई से मुंह मोड़ लेते हैं। भारत की शिक्षा व्यवस्था की दुश्मन अंग्रेजी की अनिवार्य पढ़ाई है और अंग्रेजी माध्यम की अनिवार्य पढ़ाई तो अत्यंत विनाशकारी है। स्वेच्छा से जितनी भी विदेशी भाषाएं सीखें, उतना अच्छा लेकिन भाजपा की ये नगर निगमें अपना मुंह काला करने पर उतारु हैं तो इन्हें कौन रोक सकता है ? भाजपा इस कलंक को कैसे धोएगी, वही जाने। वह इसे लगने ही क्यों दे ?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
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