लघुकथा : आत्मग्लानि
देखो न कल की ही बात है, छोटी बहन की बेटी एक खेत में दाना चुग रही थी कि तभी एक सिरफिरे मानव ने गुलेल से उसकी इहलीला समाप्त कर डाली। इतना पर भी उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ, उसने उसका आहार तक बना डाला।
पहली मैना बचपन की सहेली दूसरी मैना से अपनी तकलीफें बयां कर रही थी।
ऐसी दुष्कृति, क्या रही होगी उसकी उम्र ? दूसरी ने पहली से सवाल किया।
यही एक-डेढ़ साल के लगभग, पहली ने कहा।
घोर अन्याय है, दूसरी ने कहा। वह कह रही थी, कितनी बदल गयी है दुनिया। बदल गया है मानव का स्वभाव। प्रेम, संवेदना, संस्कार व विचार-विचार। किस पर करे लोग विश्वास, जिसने बसाया उसी ने उजाड़ दिया ? घनी आबादी के बीच एक दो मंजिले मकान से सटे आम के पेड़ पर बैठी दो मैना आपस में बातें कर रही थीं।
संयोग से मकान की छत पर खड़ा मकान मालिक दोनों सहेलियों की आपसी बातों को सुन रहा था। वह अचरज में पड़ गया। किसने उजाड़ा होगा एक बसा-बसाया घर, एक माँ के भविष्य का सहारा ? किसने की होगी ऐसी गुस्ताखी ? वह पशोपेश में पड़ गया। सोंचने लगा, इन निरीह प्राणियों के साथ बहुत ही बुरा हुआ। आम के पेड़ पर चिड़ियों को बसाने के लिये उसने कितने यत्न किये थे।
घर की छत पर प्रत्येक दिन वह अनाज के दाने डाल उन्हें परकाया करता था ताकि वे पेड़ पर अपना निवास बना सकें। कई अलग-अलग किस्म के चिड़ियों ने कई-कई दिनों तक पेड़ पर अपना आश्रय बनाया। किन्तु पता नहीं क्यों दम घुटा जा रहा था उनका। अंततः उन्होेंने उस पेड़ से अपना ठिकाना बदल लिया। बमुश्किल से ही दो-चार मैना पेड़ पर टिक पायी। आपस में बातें कर रही मैना उन्हीें दो-चार में से एक थीं।
किन्तु यह क्या ? ये जो आपस में बातें कर रही हैं यदि सच है तो फिर इससे बड़ी ग्लानि और क्या हो सकती है ?
मकान मालिक का धैर्य टूटा जा रहा था। जल्द से जल्द वह जान लेना चाहता था कि किसने की होगी ऐसी हरकत। उसने बच्चों से पूछताछ प्रारंभ की। सीधा जबाव कोई नहीें दे रहा थां, तभी उसके छोटे बेटे ने तुतलाते हुए कहा
बीते कल चिड़ियों का जो मांस आपने खाया था और कहा था ’’अरे वाह काफी स्वादिष्ट है’’, किसने बनाया यह मांस ? और जब मैने मम्मी का नाम लिया तो आव देखा न ताव आपने मम्मी को भर बांह चूम लिया। उसी मैना का मांस था, खेत में दाना चुगते हुए गुलेल से जिसका शिकार भैया ने किया था।
पापा क्या यह सच नहीं है कि शिकार करने के लिये आप ने ही वर्थडे पर भैया को गुलेल गिफट किया था ? छोटे बेटे की बातों को सुनकर मकान मालिक का सर ग्लानि के दलदल में गड़ा जा रहा था।
— अमरेन्द्र सुमन