“मुक्तक”
तलवारों की क्या कहें, जबतक रहती म्यान।
तबतक जग सुंदर लगे, हाथ रहें बेध्यान।
एक बार निकली अगर, म्यानों से करवाल-
रक्त चखे बिन कब गई, कब म्यान कर ध्यान।।-1
चंद्रहास रण की चमक, चाँद चमक आकाश।
दोनों के आकार सम, एक सरीखे ताश।
मर्यादा अनमोल है, दोनों के परिधान-
तेज धार जबजब हुई, तब तब हुआ विनाश।।-2
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी