लघुकथा – अरमानों पर पानी
जीप का ड्राइवर राधे मोहन यात्रियों से किराये को लेकर बहस कर रहा था। संवारियां बस किराया से कम देने पर अडी थी। और ड्राइवर बस किराया से एक आना भी कम लेने को तैयार नहीं था। आखिरकार ड्राइवर राधे मोहन ने अपने बात मनवा ही ली और संवारियों से पूरा किराया वसूल कर लिया। जीप चल पडी। मैंने अनायास ही जीप के ड्राइवर राधे मोहन से पूछ लिया – इतनी कडी मेहनत किसके लिए करते हो ? ड्राइवर बोला – साहब जी ! आपकी ही उम्र का मेरा लडका है। बस ! उसे पढा लिखाकर डाॅक्टर बनाना है। अभी तो ओर खूब मेहनत करनी है, पाई-पाई जोडकर उसके काॅलेज की फीस भरनी है। ड्राइवर राधे मोहन की आंखों में पुत्र के प्रति प्रेम का दूधिया वात्सल्य साफ झलक रहा था। वहीं दूसरी ओर मेरी आंखों में अश्क थे, क्योंकि उसके बेटे को मैंने आज काॅलेज के पीछे अपने दोस्तों के साथ सिगरेट फूंकते हुए देख लिया था।
— देवेंद्रराज सुथार