सामाजिक

सैक्युलरवादी और आर्य संवाद

आर्य :- “अरे भाई सुनो !! कल शाम को मेन बाजार से काँवड़ यात्रा निकालते हुए शिवभक्तों पर पथराव हुआ !”
सैक्युलर :- “अरे !! ये तो बेचारे मुस्लिम भाईयों को जानबूझकर फंसाया जा रहा है ”

आर्य :- “महाश्य ! मैने कब ये बोला कि मुस्लिमों ने ये पथराव किया है ? मैने तो किसी का नाम नहीं लिया । केवल यही बोला कि पथराव हुआ है ”
सैक्युलर :- “कुछ भी हो जानबूझकर मुस्लिम भाईयों को फँसाया जाता है”

आर्य :- “लेकिन भाईसाहब ! हमने कब बोला कि मुस्लिमों ने पथराव किया है ? आप बार बार ! मुस्लिमों का नाम क्यों ले रहे हैं ? यानी कि आप भी दिल से मानते हैं कि ये पथराव मुस्लिम समुदाय के लोग ही करते हैं ?”
सैक्युलर :- “नहीं मेरा मतलब है ! कोई भी छोटी मोटी झड़प हो तो उसमें मुस्लिमों को ही दोष दिया जाता है”

आर्य :-” लेकिन ये दोश तो आप स्वयं ही दे रहे हो हमने तो केवल इतना ही बोला कि पथराव हुआ । और आप कूद पड़े मुस्लिम समुदाय की वकालत करने । केवल इतना बता दो कि शिव भक्तों पर जिन्होंने पत्थर मारे उनपर कारवाई होनी चाहिए कि नहीं ?”
सैक्युलर :- “हाँ हाँ ! बिलकुल होनी चाहिए । लेकिन किसी को किसी मज़हब के आधार पर ऐसे ही सज़ा नहीं होनी चाहिए ।”

आर्य :- “तो भाई इसमें मज़हब को क्यों बीच में ला रहे हो ? मैने तो यही बोला कि शिव भक्तों की काँवड़ यात्रा पर कुछ लोगों ने पत्थर मारे और उनपर कारवाई होनी चाहिए । इसमें क्या गलत है ?”
सैक्युलर :- “पता है ! तुम जैसे लोग ही देश में दंगे करवाते हो और नफरत फैलाते हो !”

आर्य :- ” अजीब व्यक्ति हो आप भी !! अरे मैं तो केवल ये बोल रहा हूँ कि शिव भक्तों पर जो पत्थराव हुआ उन दोषीयों पर कारवाई होनी चाहिए । बस इतनी सी बात है । इसमें नफरत फैलाने और दंगा करवाने वाली बात कहाँ से और कैसे आ गई ?”
सैक्युलर :- “तुम लोग ऐसे ही करते हो बेचारे अल्पसंख्यको को झूठे मामलों में फँसाकर उनके खिलाफ नफरत उगलते हो ।”

आर्य :- “अरे हद है यार !! बात को कहाँ से कहाँ पहुँचा रहे हो ? हम इतना कह रहे हैं जिसने जो अपराध किया है उसे उसकी सज़ा मिले । अब यदि पत्थराव करने वाले मुस्लिम समुदाय से हैं तो क्या हम उनके द्वारा किए अपराध को छुपा दें या खारिज कर दें ? और किसी को अपराध की सज़ा देना कहाँ से नफरत फैलाना हो गया ?”
सैक्युलर :- “देखो आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता ।”

आर्य :- “बिल्कुल सही कहा जी आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता लेकिन, मज़हब होता है । एक शांतीप्रिय मज़हब !”
सैक्युलर :- “क्या मतलब है आपका ?”

आर्य :-“आतंकवाद केवल हाथ में बंदूक उठाकर लोगों को मारने का नाम ही नहीं है बल्कि अपने मज़हब से अलग सोच रखने वाले लोगों को हर तरह से प्रताड़ित करने का प्रयास करना, उनके धार्मिक कार्यक्रमों में उपद्रव करना, पत्थर मारना, उनकी लड़कियों से छेड़छाड़ करना, अपने जैसे लोगों की भीड़ के द्वारा दंगे करके उनके घरों को आग लगाना, उनकी जमीनों पर अवैध कब्जा करना, बेवजह उनसे नफरत करना, उनके पूजा करने वाले स्थानों पर हमले करना, उनकी औरतों पर नज़र रखना आदि ये सब आतंकवाद ही है और इन अमानवीय कृत्यों में जो लिप्त है वो आतंकवादी ही है ।”
सैक्युलर :- “कोई भी धर्म हमें आपस में लड़ना नहीं सिखाता ”

आर्य :-“मज़हब ही है सिखाता आपस में बैर रखना । परन्तु धर्म नहीं सिखाता । क्योंकि धर्म तो सत्यभाषण, परोपकार, सेवा, दान, तप, विद्या आदि को बोला जाता है । तो धर्म कैसे फूट डाल सकता है ? मज़हब ही कहता है कि मेरे पीर पैगंबर को न मानने वालों को जीने का अधिकार नही है ।”

To be continued……..!