“मुक्तक”
पन्नों में खो गई अकेली, हाथन लगी किताब सहेली
निकलूँ कैसे बाहर बतला, छोड़ न पाती तुझे नवेली
दरवाजा तो खोला तुमने, जाने पर मुँह मोड़ा तुमने
निकली थी देखन चौराहा, छोड़ तुझे हो गई अकेली॥
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी
पन्नों में खो गई अकेली, हाथन लगी किताब सहेली
निकलूँ कैसे बाहर बतला, छोड़ न पाती तुझे नवेली
दरवाजा तो खोला तुमने, जाने पर मुँह मोड़ा तुमने
निकली थी देखन चौराहा, छोड़ तुझे हो गई अकेली॥
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी